हर माता पिता अपने बच्चों से यह अपेक्षा रखते हैं कि वह बड़े हो कर उनका नाम रोशन करेंगे पर कई बार बच्चे बड़े होकर माता पिता का नाम रोशन करने जगह उन्हें शर्मिंदगी महसूस करवाते हैं। और ऐसा होने का कारण कही ना कही माता पिता भी होते हैं, आइये जानते है कि चाणक्य के अनुसार किसी तरह के माता पिता अपने ही बच्चो के लिए दुश्मन की तरह होते है।
चाणक्य द्वारा दिए गये श्लोक के द्वारा हम जानेंगे कि किस तरह के माता पिता बच्चो के दुश्मन की तरह है।
पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सततं बुधैः, नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः
इस श्लोक का अर्थ है कि पालक को अपने बच्चो को बचपन से ही संस्कार देना चाहिए और उन्हें सद्गुणों से युक्त बनाना चाहिए ताकि वो भविष्य में उनका नाम रोशन करें। स्वार्थ के लिए कभी भी बच्चों से झूठ नही बोलना चाहिए और ना ही उन्हें झूठ बोलने की शिक्षा देनी चाहिए और साथ ही बच्चो को शालीन स्वभाव सिखाना चाहिए।
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः, न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा
इस श्लोक का अर्थ है कि जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा नही दिलवाते है वो उनके सबसे बड़े शत्रु है क्योकि एक अशिक्षित व्यक्ति कभी भी जीवन में सफल नही हो सकता है और अशिक्षा उनमे आत्मविश्वास की कमी उत्पन्न करती है।
लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः, तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्नतुलालयेत्
बच्चो से आवश्यकता से अधिक प्यार दुलार करना आपके लिए ही भरी पड़ सकता है। ऐसा करने से बच्चे जिद्दी बनते हैं और ऐसे बच्चे चल कर माता पिता की सेवा भी नही करते हैं। बच्चों को हमेशा सही गलत का भेद कराना चाहिए।