हिन्दू धर्म में गोत्र काफी महत्व रखता है और यह वह व्यवस्था है जिसके द्वारा रक्त सम्बन्धो का पता लगाया जा सकता है। गोत्र एक तरह की पहचान है कि आप किस समूह और वंश से सम्बन्ध रखते हैं, गोत्र एक क्रम में जोड़े रखता है और किसी भी वंश के पूर्वज से जुड़ा होता है। गोत्र वो क्रम है जो बेटे के बेटे के बेटे के साथ आगे बड़ता रहता है। हिन्दुओ में यह गोत्र परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है तथा आज भी इसका पालन किया जाता है जिस कारण यह व्यवस्थित रूप से आज भी चल रही है, गोत्र रक्त सम्बन्धो को दर्शाने का एक सटीक कार्य करते हैं तथा आज के समय में भी पुराने वंशजों के कारण आपस में एक दुसरे के भाई बहन होने का प्रणाम मिलता है। रक्त सम्बन्ध पिता के रिश्तेदारों की से होता है जैसे भतीजा। इसके अलावा बंधु भी होते है जो मातृपक्ष से सम्बन्धित होते है।
आसान शब्दों में कहा जाएँ तो गोत्रीय का अर्थ उन सभी लोगों से है जिन्हें पूर्वज भी आपस में रक्त सम्बन्ध रखते थे और आज हम उन्ही की संताने है। पीढियों की गणना करने की परम्परा अलग-अलग है, कही-कही केवल वे ही व्यक्ति गोत्रीय हैं जो समान पूर्वज की सातवीं पीढ़ी के भीतर आते हैं। और किसी भी व्यक्ति के गोत्रीय का पता लगाने के लिए उसके पूछे की सात पीढ़ियों का पता लगाना होता है और उस व्यक्ति को पहला व्यक्ति मानना होता है, यह तरीका कई सभ्यताओं में प्रयोग किया जाता है।
समान गोत्र में नहीं होती है शादी
गोत्रीय सम्बन्ध निकालते समय इस बात का ध्यान भी रखना होता है कि केवल पितृ ही नहीं बल्कि अतिरिक्त सातवीं पीढ़ी तक भतीजा आदि भी आते हैं। एक गोत्र में शादी नहीं की जाती है, शादी के लिए लड़के और लड़की का गोत्र अलग-अलग होना चाहिए क्योकि जिनका एक गोत्र होता है उनके आपस में रक्त सम्बन्ध होते हैं और वह कही न कही भाई बहन का रिश्ता रखते हैं इसके अलावा एक शोध में भी पता चला है कि जिन लोगों के DNA में समानता होती है उन्हें सन्तान उत्पत्ति में समस्या आ सकत है या फिर एक बीमार और विकलांग शिशु होने की सम्भावना रहती है।
इसीलिए शादी से पहले गोत्र मिलाया जाता है, पर कई जातियों में यह माना जाता है कि सात पीढ़ियों के बाद गोत्र का इतना महत्व नहीं रह जाता है और आपस में शादी की जा सकती है पर इसको लेकर भी कई तरह के मत है और अलग-अलग मत सामने आते हैं।
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