हरिश्चंद्र में कौनसी संधि है?


इस जानकारी को देने से पूर्व हम आपको बताएंगे कि संधि क्या होता है? जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाते हैं उसे संधि कहते हैं। अगर इसे दूसरे शब्द में बताया जाए तो जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है उसे संधि कहते हैं। आइये अब हम जानेंगे कि हरिश्चंद्र में कौनसी संधि है?

हरिश्चंद्र में कौनसी संधि है?

हरिश्चंद्र में विसर्ग संधि है। ‘हरिश्चंद्र’ का अर्थ ‘सूर्य राजवंश के राजा, धर्मार्थ आदि’ है। इसका उचित संधि विच्छेद ‘हरिः + चन्द्र’ होता है। विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं। इसके उदाहरण निम्नलिख्ति पंक्तियों में दिए गए हैं :-

मनः + बल = मनोबल

दुः + शासन = दुश्शासन

निः + फल = निष्फल

मन: + रथ = मनोरथ

सरः + ज = सरोज

मनः + भाव = मनोभाव

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