दुनिया में कई तरह के प्रसिद्ध हीरे हैं पर यदि कोइसा हीरा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है तो वह है कोहिनूर हीरा जिसका इतिहास काफी लम्बा रहा है और जिसे पाने के लिए कई राजाओं ने लडाइयां लड़ी हैं पर क्या आप जानते हैं कि यह हीरा एक श्रापित हीरा माना जाता है। यदि नहीं तो आइये जानते हैं कि कोहिनूर हीरा श्रापित क्यों है?
कोहिनूर हीरा श्रापित क्यों है?
कोहिनूर हीरा, जो मूल रूप से आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा प्रांत से निकाला गया था, इसका वजन 793 कैरेट था। हालाकि, वर्षों और सदियों में, इसका वजन धीरे-धीरे कम होता गया जब तक कि रानी विक्टोरिया ने इसे अपने मुकुट में फिट करने के लिए कटवाया तब इसका वजन मात्र 105.6 कैरेट रह गया था। तब से, यह ब्रिटिश राज परिवार के विभिन्न सदस्यों के कब्जे में रहा है।
माना जाता है कि कोहिनूर हीरा इतिहास में ऐसे कई उदाहरणों के कारण शापित है जहां इसकी उपस्थिति में राजाओं को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इस हीरे का उल्लेख सबसे पहले 1304 में हुआ था, तब यह हीरा मालवा के राजा महलक देव कब्जे में था, महलकदेव भोज द्वितीय के उत्तराधिकारी थे। इसके बाद का उल्लेख बाबरनामा में है, जहां कहा जाता है कि यह ग्वालियर के राजा बिक्रमजीत सिंह के कब्जे में था।
पानीपत की लड़ाई के दौरान, उन्होंने हीरे और अपनी संपत्ति को आगरा के किले में संग्रहीत किया। युद्ध जीतने के बाद बाबर ने किले पर कब्ज़ा कर लिया और हीरा हासिल कर लिया।
1738 में ईरानी शासक ने मुगलों से यह हीरा लूट लिया और बाद में इसका नाम कोहिनूर रख दिया। नादिर शाह, जिसकी 1747 में हत्या कर दी गई थी, इस हीरे को अपने साथ ले गया। इसके बाद यह हीरा ईरानी शासक नादिर शाह के पोते शाहरुख मिर्जा के कब्जे में आ गया। जब शाहरुख मिर्जा की उम्र महज 14 साल थी ।
उस दौरान नादिर शाह के सेनापति अहमद शाह अब्दाली ने शाहरुख मिर्जा को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की, जिससे उसे खुशी हुई और उसने उपहार के रूप में कोहिनूर हीरा पेश किया। सेनापति के हीरे के साथ अफगानिस्तान पहुंचने के बाद, यह लंबे समय तक अब्दाली के वंशजों के पास रहा था।
यह पंजाब के सिख राजा महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान था जब अब्दाली का वंशज शुजा शाह लाहौर आया था। 1813 में, महाराजा रणजीत सिंह ने शुजा शाह से हीरा प्राप्त किया और तब से यह विशेष रूप से भारत में ही रहा। 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद, हीरा उनके बेटे दिलीप सिंह को दे दिया गया, जो उनके उत्तराधिकारी बने, और इसे अपने मुकुट में पहनते थे।
भारत को ब्रिटेन ने गुलाम बना रखा था और लुट पात करने लगे थे तब यह हीरा उनके कब्जे में आ गया था, इसके बाद साल 1950 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया। कहा जाता है कि महारानी विक्टोरिया को कोहिनूर का तत्कालीन प्रारूप पसंद नहीं आया जिस कारण उन्होंने एक बार फिर से कोहिनूर हीरे को तराशने के लिए दे दिया। । साल 1911 में यह हीरा महारानी अलेग्जेंडर मैरी के सरताज में जड़ दिया गया। और
1950 में यह हीरा ईस्ट इंडिया कम्पनी के पास था जिसे उन्होंने महारानी विक्टोरिया को सोंप दिया, जिसके बाद महारानी को इसका आकार इतना पसंद नहीं था जिसक कारण इन्होने इस हीरे को कटवा कर नया आकार दिलवाया, तराशने के बाद 186 कैरेट का कोहिनूर हीरा 105.6 कैरेट का रह गया और आज भी यह ब्रिटेन के रॉयल कलेक्शंस में शामिल है तथा मौत से पहले महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ताज में जड़ा हुआ था।
FAQs
वर्तमान में कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है।
कोहिनूर हीरा आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा से निकला था।
कुछ और महत्वपूर्ण लेख –