मगही या कहीं पर मागधी के नाम से जानी जाने वाली भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली भाषा है। मगही मुख्य रूप से बिहार राज्य के गया, पटना, राजगीर, नालंदा, जहानाबाद, अरवल, नवादा, शेखपुरा, लखीसराय, जमुई, मुंगेर, औरंगाबाद क्षेत्र में बोली जाती है। प्राचीन काल में यह मगध साम्राज्य की मुख्य भाषा थी। यह भोजपुरी और मैथिली भाषा से निकटतम सम्बन्धित है। यह भाषायें संयुक्त रूप से बिहारी भाषा मानी जाती है। यहां आपको मगही भाषा का साहित्य के बारे में जानने को मिलेगा साथ ही आपके प्रश्न मगही किस उपभाषा की बोली है – Magahi Kis Bhasha ki Upboli Hai? का उत्तर भी प्राप्त होगा।
कुछ विद्वानों के अनुसार मगही का जन्म संस्कृत भाषा से जन्मी है, परंतु महावीर और बुद्ध के उपदेशों की भाषा देखी जाये तो वह मागधी ही है। बुद्ध ने मागधी भाषा के मूल से संबधित प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा है- ‘सा मागधी मूल भाषा’। अर्थात मगही ‘मागधी’ भाषा से ही निकली है। वर्ष 2002 तक मगही बोलने वाली जनसँख्या 1 करोड़ 30 लाख थी । इसे देवनागरी, तिरहुता अथवा कयथी लिपि में लिखा जाता है।
मगही किस भाषा की बोली है?
Magahi Kis Bhasha ki Boli Hai: मगही बिहारी भाषा की बोली है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि मगही बिहारी भाषा की उपबोली है।
मगही साहित्य
धार्मिक एवं साहित्यिक परिपेक्ष्य में भी मगही अपनी पहचान रखती है। मगही भाषा में जैन धर्म के कई धर्मग्रन्थ लिखे गए है। मगही भाषा का पहला महाकाव्य 1960-62 के बीच गौतम महाकवि योगेश द्वारा लिखा गया था।
रामप्रसाद सिंह (10 जुलाई 1933 – 25 दिसंबर 2014) लम्बे समय तक मगही अकादमी, पटना के अध्यक्ष पद पर रहे एवं जगजीवन महाविद्यालय, गया में हिन्दी के व्याख्याता भी रहे। मगही भाषा और साहित्य के विकास के लिए इन्होंने आजीवन कार्य किया। मगही भाषा में इनकी अलग-अलग विधाओं में लगभग दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जिसमे पारस पल्लव, नीर-क्षीर, सरहपाद, लोहामरद, अकबर के कसमसाहटगांव के रेंगन-चेंगन, नरग-सरग धरती, बराबर के तलहट्टी में आदि इनकी प्रमुख मगही रचनाएं हैं। डा. रामप्रसाद सिंह के प्रयासों से नालंदा ओपन विश्वविद्यालय में मगही भाषा में एम.ए. का पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया। मगही अकादमी के अध्यक्ष पद रहते हुए उन्होंने कई पुस्तकों का संपादन किया। इनमें मगही साहित्य का इतिहास, मगही लोकगीत वृहत संग्रह, मगही लोक कथाएं, मुस्कान, सोरही, मगही समाज, निरंजना आदि उल्लेखनीय हैं।
मगही भाषा में अपने इस योगदान के लिए डॉ. रामप्रसाद सिंह को ‘मगही के भारतेन्दु’, ‘मगही के दधीचि’, एवं ‘मगही के उन्नायक’आदि उपाधियाँ दी गयी है और सन् 2002 में साहित्य अकादमी भाषा सम्मान भी दिया गया।
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