माँ ही हमें संसार में लाती है एवं माँ के महत्व को शब्दों में दर्शा पाना असम्भव है। माँ प्रेम का सागर होती है वो अपने बच्चो को कभी कष्ट में नही देख सकती है। माँ अपनी सन्तान के लिए शिक्षक से लेकर रक्षक तक की भूमिका निभाती है। माँ के रिश्ते को सभी रिश्तो से बड़ा माना जाता है। माँ अपने बच्चो का पालन पोषण करती है तथा उन्हें अच्छे संस्कार देती है उनके भविष्य को सवारने के लिए मेहनत करती है तथा उनका मार्गदर्शन करती है। भगवान को धरती पर आने के लिए भी माँ की आवश्यकता पड़ी थी बिना माँ के इस संसार की कल्पना असम्भव है। इसी लेख में आगे हम लाये हैं माता पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित जिनमे माँ के बारे में और भी बहुत कुछ कहा गया है। इन श्लोको को आप मदर्स डे पर भी अपने पोस्ट में इस्तेमाल कर सकते हैं।
माता पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ॥
अर्थ – सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है ।.
मातृ देवो भवः।
अर्थ – माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।
माता गुरुतरा भूमेरू।
अर्थ – माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।
यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी।
अर्थ – हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है।
प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।
अर्थ – धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।
रजतिम ओ गुरु तिय मित्रतियाहू जान।
निज माता और सासु ये, पाँचों मातृ समान।
अर्थ – जिस प्रकार संसार में पाँच प्रकार के पिता होते हैं, उसी प्रकार पाँच प्रकार की माँ होती हैं। जैसे, राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी मूल जननी माता।
नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
अर्थ – माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थ – हमारी माता और हमारी मातृभूमि हमारे लिए स्वर्ग से भी ऊपर है।
मातृदेवीम नमस्तुभ्यं मम जन्मदात्रिम त्वम् नमो नमः।
बाल्यकाले मां पालन कृत्वा मातृकाभ्यो त्वम् नमाम्यहम।।
अर्थ – मुझे जन्म देने वाली माँ को मैं प्रणाम करता हूँ, मैं अपनी अन्य माताओं, महिलाओं
को भी नमन करता हूं जिन्होंने मुझे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए मेरे कार्यों और जीवन में ज्ञान और ज्ञान को जोड़ा।
आयु: पुमान् यश: स्वर्ग कीर्ति पुण्यं बलं श्रियं।
पशु सुखं धनं धान्यं प्राप्नुयान्मातृ वन्दनात्।।
अर्थ – जो मनुष्य सच्चे मन से माता की सेवा करता है,
उसे लम्बी आयु, यश, स्वर्ग, यश, लक्ष्मी, धन,
पशु, अन्न और सब कुछ मिलता है।
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