जिस प्रकार अलग अलग धर्मों की अपने अपने ग्रन्थ व किताबें होती हैं उसी प्रकार आर्य समाज के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार हेतु एक ग्रन्थ की रचना की गयी जिसे सत्यार्थ प्रकाश के नाम से जाना जाता है। यह आर्य समाज का प्रमुख ग्रन्थ है एवं इसका प्रकाशन अब तक 20 से अधिक भाषाओ में किया जा चुका है। यह ग्रन्थ न केवल आर्य समाज के लिए अपितु हिन्दू धर्म व संस्कृति को बदनाम करने हेतु बाह्य आक्रमणकारियों को मुँह तोड़ जवाब देने के लिए रचा गया।आज हम जानेंगे कि सत्यार्थ प्रकाश किसकी रचना है – Satyarth Prakash Kiski Rachna hai? व इससे जुड़े कुछ मुख्य तथ्य।
सत्यार्थ प्रकाश किसकी रचना है?
Satyarth Prakash Kiski Rachna hai: सत्यार्थ प्रकाश के लेखक महर्षि दयानन्द सरस्वती है। उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना 1875 में हिंदी में की थी। स्वामी जी ने इस ग्रन्थ की रचना उदयपुर में की थी और जिस स्थान पर इसका लेखन हुआ वह वर्तमान में सत्यार्थ प्रकाश भवन के नाम से जाना जाता है। सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम संस्करण का प्रकाशन अजमेर में हुआ था। इस संस्करण में कुछ भाषा व प्रिंटिंग की गलतियां एवं कुछ बातें छूट गयी थी जिन्हें सुधारकर 1882 में स्वामीजी ने इसका द्वितीय संस्करण निकाला और उसके बाद से अब तक सत्यार्थ प्रकाश के 20 से अधिक भाषाओं में संस्करण प्रकाशित हुए हैं।
ज्ञानग्रंथ का WhatsApp Channel ज्वाइन करिये!सत्यार्थ प्रकाश की रचना का प्रयोजन
उन्नीसवीं सदी में बहुतयात से अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जा रहा था व साथ ही विदेशी सरकार अपने पादरियों द्वारा देश के हर कोने में ईसाई धर्म का झंडा फहराने हेतु करोड़ों रुपया खर्च कर रही थी। हिन्दुओं को उनकी संस्कृति से घृणा कराने हेतु गलत पुस्तकें बांटी जा रही थी। जिससे हिन्दू अपनी ही संस्कृति को हेय मानते हुए पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने में गर्व समझने लगे थे। हर दिन 144 हिन्दू मुस्लिम धर्म अपना रहे थे और इससे कहीं अधिक लोगों को ईसाई धर्म में कन्वर्ट किया जा रहा था। निराधार लांछन हिन्दू धर्म पर लग रहे थे जिनका उत्तर देने के बजाये लोग राष्ट्रीयता का विरोध और वेदों की निंदा करने लगे थे।
इसी का उत्तर देने हेतु व हिन्दू धर्म में सुधार लाने के लिए स्वामीजी ने आर्य समाज की स्थापना की व सत्यार्थ प्रकाश की रचना की। सत्यार्थ प्रकाश द्वारा ही भारत में बाह्य तथ्यों द्वारा किया जा रहा यह आघात रुका। उन्होंने यह भी लिखा कि “स्वराज्य (स्वदेश) में उत्पन्न हुए (व्यक्ति) ही मन्त्री होने चाहिये। परमात्मा हमारा राजा है। वह कृपा करके हमको राज्याधिकारी करे।”
इस ग्रन्थ में लिखी तर्क प्रधान बातों एवं स्व-समाज, स्व-धर्म, स्व-भाषा तथा स्व-राष्ट्र के प्रति भक्ति जाग्रत करने वाली बातों के कारण धीरे-धीरे उत्तर भारतीय हिन्दू इस और खींचने लगे जिससे जिससे आर्य समाज सामाजिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में लोकप्रिय हुआ।
सत्यार्थ प्रकाश से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य व इसके प्रभाव –
- सत्यार्थ प्रकाश का संधि विच्छेद होता है सत्य + अर्थ + प्रकाश अर्थात् सही अर्थ पर प्रकाश डालने वाला ग्रन्थ।
- सत्यार्थ प्रकाश का अनुवादन 20 से अधिक भाषाओं में किया जा चुका है। यह अनुवादन मात्र भारतीय भाषाओं में ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय भाषाओ में भी हुआ है जैसे चीनी, स्वाहिली, जर्मन, फ्रांसीसी, अरबी आदि।
- सत्यार्थ प्रकाश में स्वामीजी ने कई अंध-विश्वासों एवं बालविवाह, वर्ण व्यवस्था आदि का सप्रमाण खंडन किया है।
- स्वामी दयानन्द की जीवनी व सत्यार्थप्रकाश स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारियों की प्रिय पुस्तक बनी। यह उस समय की कालजयी कृति कही जाती है जिससे अंग्रेजों की सरकार को काफी नुकसान पहुंचा।
- हिन्दुओ के धर्मान्तरण पर रोक लग गयी साथ ही साथ मुसलमानों, ईसाई आदि विधर्मियों की शुद्धि (घर वापसी ) हुई।
- स्त्रियों का सम्मान बढ़ा एवं मूर्तिपूजा का स्वरुप बदल गया।
- सत्यार्थप्रकाश ने वेदों के महत्व को बढ़ाया एवं श्रीकृष्ण व अन्य देवताओं पर लगे गंदे आरोपों व लांछन को दूर किया।
- हिन्दुओं की रगों में नया उबाल आया।
FAQs
सत्यार्थ प्रकाश का अर्थ है सही अर्थ पर प्रकाश डालने वाला ग्रन्थ। इसमें सत्य को सत्य व मिथ्या को मिथ्या तर्क व सप्रमाण बताया गया है। यह ग्रन्थ आर्य समाज का प्रमुख ग्रन्थ है।
सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की रचना का श्रेय महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को जाता है इन्होने 1875 में हिंदी में इस ग्रन्थ की रचना की थी।
सत्यार्थ प्रकाश की रचना सर्वप्रथम हिंदी में की गई उसके पश्चात् इसे 20 से अधिक भाषाओं में अलग अलग विद्वानों द्वारा अनुवादित किया जा चुका है।
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