महाशिवरात्रि की कथा

महाशिवरात्रि की कथा : महा शिवरात्रि पूजन पौराणिक व्रत कथा

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By Shubham Jadhav

प्रत्येक व्रत के पीछे कोई न कोई कथा अवश्य ही होती है। इन कथाओं के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को व्रत का महत्व पता चल सके इसलिए ये कथाए हमारी दादी-नानी या पंडितों द्वारा हमें सुनाई जाती हैं या बतायी जाती हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही कथा से अवगत कराने वाले हैं जो काफी महत्वपूर्ण है। यह कथा है महाशिवरात्रि की कथा। महाशिवरात्रि के व्रत पर इस कथा का पाठ किया जाता है।

महाशिवरात्रि की कथा

महा शिवरात्रि पूजन पौराणिक व्रत कथा :

एक समय की बात है जब चित्रभानु नाम का एक शिकारी हुआ करता था, जो शिकार कर अपनी जीविका चलाता था। परन्तु उसकी आर्थिक स्थिती ठीक नही थी जिस कारण उसने साहूकार से ऋण ले रखा था, परन्तु वह यह ऋण चुका नहीं पा रहा था, जिस कारण उस साहूकार ने उस शिकारी को बंदी बना लिया था।

साहूकार ने इस शिकारी को एक शिवमठ में बंदी बना कर रखा था। जहां शिवरात्रि व्रत की कथा भी चल रही थी जो उस शिकारी ने सुन ली थी, इस दिन शिवरात्रि भी थी। जिसके बाद उस शिकारी ने साहूकार से अगले दिन ऋण चुकाने का वादा किया और साहूकार मान भी गया।

अब शिकारी को भूख लग रही थी तो खाने के लिए शिकार करना था। जिस वजह से वह घर जाने से पहले हिरण के शिकार की तैयारी करने लगा। फिर वह बेल के पेड़ के समीप शिकार का इंतज़ार करने लगा परन्तु बहुत समय हो गया था तो उसने पेड़ पर ऊपर बैठने का निर्णय लिया।

पर वह शिकारी जानता नही था कि इस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग है जो फिलहाल बेल के पत्तों से ढका हुआ है। वहां बैठ कर वह शिकारी पेड़ के पत्तों को तोड़-तोड़ कर नीचे की और फैकने लगा क्यूंकि वहाँ बैठ कर वो शिकार की प्रतीक्षा में व्याकुल हो रहा था।

पर उसे पता नही था कि आज शिवरात्रि के दिन उसका व्रत भी हो गया है और उसने कथा भी सुन ली है और अब अनजाने में शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ा दिया है। फिर कुछ समय बाद वहाँ एक हिरणी पानी पिने के लिए आई पर जैसे ही शिकारी उसका शिकार करता हिरणी ने कहा कि “मैं गर्भवती हूँ और कुछ देर पश्चात् ही बच्चे को जन्म देने वाली हूँ, जन्म के बाद में आपके पास पूनः आ जाउंगी।”

शिकारी मान गया फिर कुछ देर बाद वहाँ पर एक हिरणी का फिर से आगमन हुआ, फिर शिकारी ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और निशाना लगाया हि था कि उस हिरणी ने कहा “में थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं तथा कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में यहाँ वहाँ भटक रही हूं। मैं मेरे प्रिय से मिलने के बाद आपके पास आ जाउंगी।” शिकारी ने उस हिरणी को भी जाने दिया।

कुछ समय बाद एक हिरणी अपने बच्चो के साथ वहाँ से गुजर रही थी और इस बार शिकारी ने उसका शिकार करने का मन बना लिया था पर हिरणी ने कहा कि मेरे बच्चो को उनके पिता के पास छोड़ कर मैं आपके पास पूनः आ जाउंगी। शिकारी उसकी बात भी मान गया और उसे भी जाने दिया। शिकार के अभाव में वह शिकारी बेल पत्र अनजाने में ही सही पर शिवलिंग पर चड़ाए जा रहा था।

कुछ देर बाद वहां एक हिरण आया शिकारी ने उसका शिकार करने की सोची पर वह उन हिरणियो का पति था, जिसने शिकारी से कहा कि “अगर तुम मेरा शिकार कर लोगे तो मेरी पत्नियों ने जो तुम्हे वचन दिया है वो पूर्ण नहीं होगा तुम मुझे थोडा सा समय दो में उन्हें लेकर आता हु।”

अनजाने में ही शिकारी के द्वारा जो शिवरात्रि के दिन शिवजी की पूजा, व्रत आदि सम्पन्न हो गये थे इस वजह से उसका मन कोमल हो गया था और उसने उस हिरण को भी जाने दिया। कुछ ही देर में वह हिरण अपनी पत्नियों को लेकर वहां पहुंचा पर जानवरों की यह सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी ने उन्हें जीवन दान दे दिया।

देवलोक से समस्त देव भी इस घटना को देख रहे थे। यह देख भगवान शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया व उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर गुह नाम प्रदान किया। यही वह गुह था जिसके साथ भगवान् श्री राम ने रामायण में मित्रता की थी।

FAQs

शिवरात्रि कब है 2024 में?

शिवरात्रि 2024 में 8 मार्च, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

कथाएं क्यों सुनाई जाती हैं?

कथाओं को सुनाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इनके माध्यम से आसानी से कोई भी व्यक्ति किसी पर्व, रीति-रिवाज़ या वस्तु के बारे में आसानी से समझ सकता है।

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