नित नविन जानकारियां प्राप्त करते हुए ज्ञान में वृद्धि करना बहुत ही आवश्यक है। यह एक ऐसी क्रिया है जिसे निरंतर चलते रहना चाहिए। आज इसी प्रकार ज्ञान वृद्धि के लिए आप आज सर्च करते हुए आये हैं कि चरण कमल बंदौ हरिराई में कौन सा अलंकार है और क्या है इसका अर्थ? तो चलिए हम आपको बता देते हैं।
चरण कमल बंदौ हरिराई किसकी रचना है?
चरण कमल बंदौ हरिराई सूरदास जी की रचना है जिसमें वे अपने प्रभु श्री कृष्ण के पावन चरणों का व्याख्यान कर रहे हैं। सूरदास जी भक्ति काल के एक महान कवि थे एवं प्रभु श्री कृष्ण के अनन्य उपासक थे। उन्हें हिंदी साहित्य का सूर्य एवं ब्रज भाषा के श्रेष्ठ कवि माना जाता है।
प्रश्न –
चरण कमल बंदौ हरिराई में कौन सा अलंकार है?
उत्तर – रूपक अलंकार
Question – Charan Kamal Bando Hari Rai Mein Kaun sa Alankar Hai
Answer – Rupak Alankar
चरन कमल बंदौ हरि राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौ सब कुछ दरसाइ॥
बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ।
सूरदास स्वामी करूनामय, बार – बार बंदौं तिहिं पाइ॥
चरण कमल बंदौ हरिराई की व्याख्या (अर्थ)
इन पंक्तियों के द्वारा सूरदास जी ने अपने प्रभु श्री कृष्ण के पावन कमल रूपी चरणों का गुणगान करते हुए लिखा है, मेरे प्रभु श्री कृष्ण ऐसे हैं जिनकी कृपा हो जाये तो लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वत को लांघ जाता है, अंधे व्यक्ति को दिखाई देने लगता है, बहरा सुनने लगता है, गंगा फिर से बोल उठता है और भिखारी के सर पर भी छत्र आ जाता है अर्थात एक भिखारी भी राजा बन सकता है। सूरदास के स्वामी बहुत ही करुणामयी हैं एवं बार-बार मैं उनके चरणों में शीष नमाता हूँ।
शब्द के अर्थ
चरन = पैर
बंदौ = वन्दना करना
हरि राई = श्रीकृष्ण
पंगु = लंगड़ा
गिरि = पहाड़
लघै = पार करना
दरसाइ = दिखना
बहिरी = बहरा
सुने = सुनना
पुनि = फिर से
रंक = गरीब
घराइ = धारण करना
विहि = उसा
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FAQs
चरण कमल बंदौ हरिराई की रचना का श्रेय सूरदास जी को जाता है।
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