सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म है इसमें कई देवी देवताओ की पूजा की जाती है, जैसे हनुमान जी, राम जी, कृष्ण जी, विष्णु जी, लक्ष्मी जी आदि। आपने कई बार अवश्य सुना होगा कि इष्टदेव का नाम लीजिये या फिर कही न कही इष्टदेव शब्द तो अवश्य ही सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं कि इष्टदेव का मतलब क्या होता है? यदि नहीं तो आपको यहाँ इस बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी।
इष्टदेव का मतलब क्या होता है?
व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार इष्टदेव का चयन करता है, जिस व्यक्ति की जिन देवता के प्रति ज्यादा श्रद्धा होती है तथा वह जिस देवता की सबसे ज्यादा आराधना करता है उनके मन्दिर में जाता है वही उसके इष्टदेव कहलाते हैं। हिन्दू धर्म में इष्टदेव का बेहद महत्व है, इष्टदेव का नाम हर अवसर पर लिया जाता है तथा इष्टदेव की पूजा करने से जल्द ही शुभ फल की प्राप्ति होती है। हर किसी के इष्टदेव अपनी रुचि के अनुसार अलग-अलग होते हैं पर किसी भी देवता की पूजा करें वह सभी देवो की पूजा के समान ही हैं और आपकी पूजा अर्चना सीधे परम परमेशर के पास ही जाती है। किसी व्यक्ति के इष्टदेव हनुमान जी हो सकते है, वह इसी के अनुसार हर मंगलावर को व्रत रखता होगा, उनके मन्दिर जाता होगा, उन्हें चोला अर्पित करता होगा। उसी प्रकार जिसके इष्टदेव शंकर भगवान होंगे वह इसी अनुसार सोमवार को शिव मंदिर जाता होगा, सोमवार को व्रत करता होगा आदि।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके इष्टदेव कौन है आपकी श्रद्धा और भक्ति महत्व रखती है, इष्टदेव के अलावा अन्य देवताओं की पूजा भी समय-समय के अनुसार की जाती है और हर हिन्दू पर्व और मान्यताओं को माना जाता है, आपके इष्टदेव आपकी हर समस्या से रक्षा करते हैं तथा सदा आपके साथ रहते हैं। कई लोग राशि अनुसार अपने इष्ट देव का चयन करते हैं यह भी किसी तरह से गलत नहीं है। यदि आप अपनी इच्छा से या राशि से किसी भी तरह अपने इष्टदेव को चुने आपको केवल उनकी भक्ति पर ध्यान देना है।
राशि अनुसार इष्ट देव
मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है इसलिए इन दोनों राशिवालों के इष्टदेव हनुमानजी और राम जी हैं, वृषभ और तुला राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है और इसलिए इनकी इष्ट देवी मां दुर्गा हैं, उन्हें इनकी आराधना करनी चाहिए.
मिथुन और कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध है और इसलिए उनके इष्ट देव गणेशजी और विष्णुजी हैं और उन्हें इनकी पूजा करनी चाहिए।
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