कलयुग में पाप बड़ता जा रहा है और पुण्य कम होता जा रहा है। लोगों में मानवता घटती जा रही है और क्रूरता बढ़ रही है ऐसे में केवल पूण्य करना ही श्रेष्ठ है। क्या आप जानते हैं कलयुग में पुण्य क्या है? यदि नहीं तो इस लेख में आपको इसका उत्तर मिल जाएगा।
हर युग में पुण्य की परिभाषा समान ही है, और हमारे शास्त्रों में यहाँ तक कहा गया है कि कलयुग में भगवान को प्रसन्न करना अन्य युगों की तुलना में सरल है। इस संसार में जो पुण्य करता है उसे सुख समृद्धि मिलती है तथा जो पाप करता है उसे मृत्यु के पश्चात भी सजा भोगनी पड़ती है। भगवान ने इस संसार में हर तरह के कर्मो को निर्मित किया है यह आपकी इच्छा है कि आप किसका चयन करते हैं, यदि पाप कर्मो को चुनते हैं और कुछ क्षण के आनन्द के लिए पाप के भागी बनते हैं तो आपको उसके बुरे परिणामो का सामना करना पड़ता हैं।
सतयुग से लेकर कलयुग तक कई तरह के मनुष्यों का जन्म हुआ है जिन्हें अपने कर्मो के आधार पर अगला जन्म मिलता है, 84 लाख योनियों को भोगने के बाद मानव जीवन मिलता है और केवल एक मात्र मानव जीवन ही प्रभु की भक्ति और पुण्य कर्म आसानी से कर सकता है।
भगवान ने मनुष्यों को सोचने समझने की शक्ति प्रदान की है पर कुछ ही लोग इसे भक्ति भाव और पुण्य कर्मो में लगाते हैं, बाकि लोग अपनी इन्द्रियो को वश में नहीं रख पाते हैं या नहीं रखना चाहते हैं और बुरे कामो में लिप्त हो जाते हैं।
कलयुग में पुण्य क्या है?
हिन्दू धर्म में पुण्य का अर्थ है भगवान की भक्ति करना, स्वयं को धार्मिक कार्यो में जोड़ना, जरूरतमंदो की सहायता करना, सात्विक आचरण रखना, नशे से दूर रहना, सत्य का साथ देना, धार्मिक ग्रंथो का ज्ञान रखना उन्हें पढ़ना और उनमे लिखी बातो पर अमल करना ही पुण्य है।
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