महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

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By Shubham Jadhav

प्रश्न – महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

महामारी (मलेरिया व हैजे) के समय लोग सूर्योदय के बाद आपस में मिलना और बातें करना प्रारम्भ कर देते थे। मृत्यु का डर तो उनके दिल में रहता था पर एक दुसरे को सहानुभूति देना लोगों की हिम्मत बढ़ाना तथा बीमारी से ग्रस्त लोगों के मन में सकारात्मकता लाने का काम गाँव के लोग किया करते थे। दिन में तो गाँव में चल पहल रहती थी पर सूर्यास्त के बाद दृश्य पूरी तरह से उल्टा हो जाता था, लोग अपने घरो में चले जाते थे जिससे की सन्नाटा छा जाता था तथा लोग मरते हुए अपने संबंधी को दो शब्द भी बोल नहीं पाते थे। केवल पहलवान की ढोलक इस परिस्थिति को चुनौती देती प्रतीत होती थी। पहलवान का नाम लुट्टन था।

पहलवान की ढोलक कहानी फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखी गयी थी। यह एक प्रसिद्ध लेखक है जिन्होंने कई कहानिया लिखी है। यह कहानी CBSE बोर्ड में कक्षा 12 के हिंदी विषय में दी गयी है। जिसकी पाठ संख्या 14 है तथा किताब का नाम NCERT है।

FAQs

पहलवान की ढोलक का उद्देश्य क्या है?

महामारी से ग्रामीणों को ढोलक की आवाज मौत से लड़ने की प्रेरणा देती थी।

पहलवान की ढोलक के लेखक कौन है?

पहलवान की ढोलक के लेखक फणीश्वर नाथ रेणु जी है।

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