संयम क्या है

संयम क्या हैं, संयम का अर्थ, संयम किसे कहते हैं?

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By Shubham Jadhav

मनुष्य के लिए खुद के मन को काबू कर पाना बहुत ही मुश्किल काम है। मनुष्य की इच्छाएँ अनंत होती है यही उसके दुःख का कारण बनती है। इस माया रूपी दुनिया में मन पर नियंत्रण रखे वरना बहुत सी समस्याओ से सामना करना पड़ सकता है। विपरीत परिस्तिथि में मन को सामान्य रखना बहुत जरुरी है वरना कार्य बिगड़ भी सकते है। इसीलिए कहा जाता है परिस्तिथि में संयम जरुरी है तो आइये जानते है की संयम क्या है ?

संयम क्या है?

संयम आत्मा का वो गुण है जो एक सहज स्वभाव को दर्शाता है। सांसारिक भोग और सम्पूर्ण त्याग के मध्य का भाग संयम कहलाता है। संयम को किसी भी परिस्तिथि में टूटने ना देना ही आपके व्यवहार को प्रदर्शित करता है । अति की चाहता ही विनाश का कारण है इससे मनुष्य को बचना चाहिए । किसी के प्रति लगाव होना ठीक हे पर इसमें अति नहीं होनी चाहिए मन को यह ज्ञात होना चाहिए की किसी के प्रति प्रेम भावना होना सकारात्मक है पर अति होने पर इसके नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल सकते है।

मन को स्थिर रखने के लिए कामनाओं पर नियंत्रण जरुरी है। संयम को ले कर बहुत से विद्वानों ने कहा है की इसका होना बहुत आवश्यक है भगवान बुद्ध ने भी संयम को लेकर कहा है की काम भोगों से लिप्त जीवन और आत्मपीड़ा प्रधान जीवन में अति का होना बहुत दुष्प्रभाव डाल सकता है। वह कहते है की मनुष्य को हमेश मध्य मार्ग को ही चुनना चाहिए। संयम जीवन को सरल करने का सबसे उचित साधन है।

संयम मतलब इच्छाओ का दमन?

बिलकुल नहीं, संयम का अर्थ बिलकुल ये नहीं है की आप इच्छाओ का दमन कर दे। बस किसी भी परिस्तिथि में अति की चाह न रखे मनुष्य के लिये इन्द्रियों को वश में रखना बहुत कठिन है । आत्मनियंत्रण, सहनशीलता के साथ जीवन व्यतीत करना चाइये। धैर्य, क्षमा, और क्रोध ना करना संयम है इससे जीवन सरल व सुखद होता है । संयम का अर्थ यह बिलकुल नहीं है की आप अणि इच्छाओ का दमन कर दे ।

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