भारत की इस दिव्य भूमि में अनेक महान लेखक व कवि हुए हैं, उन्ही में से एक है जयशंकर प्रसाद। प्रसाद जी ने हिंदी भाषा में कामायनी नामक एक महाकाव्य लिखा है। कामायनी प्रसाद जी की आखरी रचना है जो 1936 ई. में प्रकाशित हुई थी। आईये जानते हैं कि Kamayani Kis Yug Ki Rachna Hai – कामायनी किस युग की रचना है?
Kamayani Kis Yug Ki Rachna Hai?
कामायनी छायावादी युग की काव्यकला का प्रतिक चिन्ह है जिसे ‘चिंता’ से लेकर ‘आनंद’ तक 15 सर्गो में बाँट कर मानव मन की अंतर्वृत्तियों को इस प्रकार से उकेरा गया है कि इसमें मानव के जीवन प्रारंभ से अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है। कामायनी के 15 सर्ग निम्नलिखित हैं –
1. चिन्ता 2. आशा 3. श्रद्धा 4. काम 5. वासना 6. लज्जा 7. कर्म 8. ईर्ष्या 9. इड़ा (तर्क, बुद्धि) 10. स्वप्न 11. संघर्ष 12. निर्वेद (त्याग) 13. दर्शन 14. रहस्य 15. आनन्द।
इस महाकाव्य के प्रधान पात्र ‘मनु’ और कामपुत्री कामायनी ‘श्रद्धा’ हैं। जिसमे मनु मन के समान ही अस्थिरमति के हैं ओर श्रद्धा में आस्तिक्य भाव तथा बौद्धिक क्षमता के गुण देखने को मिलते हैं।
कामायनी मानव को एक महान सन्देश देती है कि तप नहीं केवल जीवनसत्य के रूप में मानव जीवन को देखे। इस जीवन में प्रेम ही एकमात्र श्रेय और प्रेय है।
कामायनी के विषय में डॉ. नगेन्द्र कहते हैं, कि कामायनी मानव चेतना के विकास का महाकाव्य है।
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