हिन्दू धर्म में किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले शंख बनाने की परम्परा है तथा हर मंदिर में शंख के अवाहन के साथ ही पूजा प्रारम्भ की जाती है। पर क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ शंख बजाने पर प्रतिबन्ध है। जी हाँ उतराखंड के बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता हैं अगर नहीं तो इस लेख में आपको इसका उत्तर मिल जाएगा।
बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता है?
पंडित विकास शास्त्री के अनुसार बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है, माना जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं-9वीं सदी में हुआ था। इस मंदिर में बद्रीनारायण जी की मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर हिन्दुओ के चार धामों मेसे एक है जहाँ हर साल लाखों लोग भगवान बद्रीनारायण के दर्शन के लिए आते हैं।
धार्मिक मान्यता
माना जाता है कि इस मंदिर के आस पास के क्षेत्र में दानवो का अत्यधिक आतंक था। यह सभ देख कर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती से मदद तभी मां भगवती ने माता कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से सारे राक्षसों का नाश करना प्रारम्भ कर दिया यह देख आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस माता के प्रकोप से बचने के लिए वहा से भागने लगे, जिसके बाद आतापी मंदाकिनी नदी में छुप गया और वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर घुसकर छुप गया। इस घटना के बाद से ही बद्रीनाथ में शंख न बजाने की परम्परा है।
दूसरी मान्यता
शंख न बजाने के पीछे एक मान्यता और है कि एक मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने तुलसी भवन में ध्यान कर रही थी उसी समय भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किया था, और विजय के पश्चात भी शंखनाद नहीं किया था क्योकि वे लक्ष्मी जी के ध्यान में विघ्न नहीं डालना चाहते थे। तभी से बद्रीनाथ धाम में शंख ना बजाने का परम्परा चली आ रही है।
कुछ और महत्वपूर्ण लेख –