इस लेख में आप जानेंगे कि भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति का तरीका क्या है?
भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति का तरीका
भगवत गीता में पाप और पुण्य को विस्तृत तरीको से बताया गया है तथा गरुण पुराण में पापो की मुक्ति, सजा और जन्म मृत्यु को ले कर जानकारी प्रदान की गयी है। गीता के अनुसार किसी भी जीव को दुःख देना ही पाप है। मनुष्य को 84 लाख योनियों को भोगने के बाद मनुष्य जीवन मिलता है यदि उसमे भी व्यक्ति भगवान की भक्ति, पुण्य कार्य नहीं करता है और पाप कर्मो में लिप्त हो जाता है तो उसे इसकी सजा भोगनी पड़ती है। भगवान ने कर्मो की सजा के लिए नर्क की भी स्थापना की है, जहाँ व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात सजा दी जाती है तथा उसकी आत्मा अगले जन्म में भी अपने कर्मो की सजा भोगती है। पाप कर्मो में लोभ, मोह, अहंकार आदि भी आते हैं। इसके अलावा संसार के सारे नकारात्मक गुण पाप कर्मो में आते हैं। पाप कर्मो के कारण व्यक्ति इस जन्म मृत्यु के चक्र से बाहर नहीं आ पाता है तथा बार-बार इस मृत्यु लोक में अलग-अलग योनियों में जन्म लेता रहता है तथा उसे मोक्ष नहीं मिलता है।
गीता में यह भी बताया गया है कि पाप कर्म से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति को निष्काम कर्म, भक्ति, ज्ञान और अनुशासन के माध्यम से अपने मन और कर्मों को शुद्ध करना चाहिए। यह उसे आत्मिक विकास, स्वतंत्रता और मोक्ष की प्राप्ति में सहायता करेगा।
भगवान की भक्ति, और समाज की सेवा कर आप अपने पाप कर्मों से मुक्ति पा सकते हैं पर ध्यान रहें आपको उन कामो की सजा जरुर मिलेगी जो अपने जानबूझ कर किये है या फिर जो अत्यधिक क्रूर माने गये हैं। आप सुकर्म कर अपने पापो की सजा को कम कर सकते हैं पर पूर्ण रूप से पाप कर्मो की सजा का अंत करना इतना आसान नहीं है।
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