गीता में बहुत से श्लोक हैं उन्ही मेसे एक है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत जिसका अर्थ बहुत ही कम लोग जानते हैं। तो अज हम इस लेख की मदद से आपको इस श्लोक के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आइए जानते हैं कि यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में क्या होता है।(yada yada hi dharmasya sloka meaning in hindi)
यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में
महाभारत के युद्ध के समय जब कौरव की विशाल सेना को देखकर अर्जुन डर गये थे तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का मनोबल बढाया था। अर्जुन ने तो अपने गुरुजनों तथा परिजनों के साथ युद्ध लड़ने से इनकार कर दिया था पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था इसी समय उन्होंने इस श्लोक का प्रयोग किया था।
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अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
इस श्लोक का अर्थ है कि धर्म की हानि जब जब होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं धरती पर अवतार लेकर आता रहूंगा और धर्म की रक्षा और स्थापना करूंगा एवं अधर्म का नाश करूंगा। इस श्लोक के आगे भी एक श्लोक है-
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे
इसका अर्थ है कि मैं यानिकी कृष्ण हर युग में बार-बार अवतार लूंगा जो साधुओं की रक्षा करने के लिए, धरती पर पाप को खत्म करने के लिए, पापियों का संहार करने के लिए और धर्म को स्थापित करने के लिए होगा और में जनकल्याण करूँगा।
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