यह माना जाता है कि गीता का मात्र नाम लेने से ही पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवत गीता को भगवान श्रीकृष्ण का हृदय माना जाता है। इसमें वे सारी बातें हैं जो साक्षात् श्रीकृष्ण ने कहीं थी। यह माना जाता है कि इस महाग्रंथ में मनुष्य के सारे सवालों का जवाब लिखा है। गीता में श्रीकृष्ण ने दुनिया को उपदेश देने की कोशिश की है। इस ग्रंथ में ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम बताया गया है। गीता में कुल 18 अध्याय हैं। आज हम गीता में कुल कितने श्लोक हैं? पर चर्चा करेंगे।
भगवत गीता में कुल कितने श्लोक हैं?
पंडित शिव नाथ के अनुसार भगवत गीता में कुल 700 श्लोक हैं। इसमें 700 श्लोक होने की वजह से इसे सप्तशती भी कहा जाता है। यह 700 संख्या रहस्य्मय मानी जाती है क्योंकि दुर्गा सप्तशती में भी 700 श्लोक हैं। यह ग्रंथ महाभारत के भीष्म पर्व से अवतरित हुई है। भगवत गीता के 700 श्लोकों में से श्रीकृष्ण ने 574, अर्जुन ने 84 तथा संजय ने 41 श्लोक कहे हैं।
भगवत गीता वो शब्द है जो भगवान कृष्ण के द्वारा अर्जुन को कहें गये थे, जिनमे अर्जुन को उनके कर्तव्यो को ज्ञात करवाने के लिए कृष्ण द्वारा धर्म और कर्म से सम्बन्धित ज्ञान दिया गया था। जो आज भी प्रासंगिक है तथा गीता में लिखी गयी हर बात सत्य है, यह व्यक्ति में एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है तथा उन सभी मार्गो को प्रशस्त करती है जिससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं और आध्यात्म को बढाती है। इसीलिए यह हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक है और सबसे ज्यादा पड़ी जाने वाली पुस्तको में शामिल है।
गीता में सभी वेदों का निचोड़ है जिससे की मनुष्य को बहुत कुछ सिखने को मिलता है, यदि वह गीता के सार को जीवन में उतार लेता है तो उसका जीवन सुखमय हो जाता है। गीता में अहंकार, क्रोध, लालच इन सभी को बुरा बताया गया है और यही जीवन का पतन करते हैं ऐसा भी कहा गया है। युद्ध क्षेत्र में जब अर्जुन ने अपने परिजनों के साथ युद्ध करने से मना कर दिया था तब कृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्तव्यो से अवगत कराया था।
भगवत गीता के18 अध्याय के नाम क्या है ?
- पहला अध्याय- अर्जुनविषादयोग
- दूसरा अध्याय- सांख्ययोग
- तीसरा अध्याय- कर्मयोग
- चौथा अध्याय- ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
- पांचवां अध्याय- कर्मसंन्यासयोग
- छठा अध्याय- आत्मसंयमयोग
- सातवां अध्याय- ज्ञानविज्ञानयोग
- आठवां अध्याय- अक्षरब्रह्मयोग
- नौवां अध्याय- राजविद्याराजगुह्ययोग
- दसवां अध्याय- विभूतियोग
- ग्यारहवां अध्याय- विश्वरूपदर्शनयोग
- बारहवां अध्याय- भक्तियोग
- तेरहवां अध्याय- क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग
- चौदहवां अध्याय- गुणत्रयविभागयोग
- पंद्रहवां अध्याय- पुरुषोत्तमयोग
- सोलहवां अध्याय- दैवासुरसम्पद्विभागयोग
- सत्रहवां अध्याय- श्रद्धात्रयविभागयोग
- अठारहवां अध्याय- मोक्षसंन्यासयोग
गीता को लेकर महापुरुषों के विचार
‘श्रीमद् भगवदगीता’ उपनिषदरूपी बगीचों में से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यरूपी पुष्पों से गुँथा हुआ पुष्पगुच्छ है।
-स्वामी विवेकानन्द
प्राचीन युग की सर्व रमणीय वस्तुओं में गीता से श्रेष्ठ कोई वस्तु नहीं है। गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसके रचयिता देवता को असंख्य वर्ष हो गये फिर भी ऐसा दूसरा एक भी ग्रन्थ नहीं लिखा गया है।
-अमेरिकन महात्मा थॉरो
हम सबको गीताज्ञान में अवगाहन करना चाहिए। भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करने वाला यह गीता ग्रन्थ विश्व में अद्वितिय है।
-पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज
एक बार मैंने अपना अंतिम समय नजदीक आया हुआ महसूस किया तब गीता मेरे लिए अत्यन्त आश्वासनरूप बनी थी।
–महात्मा गाँधी
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