इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ और साथ ही आपको नालंदा विश्वविद्यालय से जुडी और भी जानकारियां पढ़ने को मिलेगी।
नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ?
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई.में कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इसके बाद भी इस विश्वविद्यालय का विकास होता रहा है और गुप्त शासक कुमारगुप्त के उत्तराधिकारी हेमंत कुमार ने भी इसका विस्तार किया था। यह उस समय का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था जो उच्च शिक्षा का केंद्र था। इस विश्वविद्यालय में २,००० शिक्षक थे जो १०,००० छात्रों को पढ़ाने का काम करते थे। इस विश्वविद्यालय में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की के विद्यार्थी भी विद्या प्राप्त करने के लिए आते थे। इस विश्वविद्यालय के परिसर में मंदिर आदि मोजूद थे और बड़े बड़े कक्षों की व्यवस्था भी थी। यहाँ शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति नाम के प्रसिद्ध शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय में वेद, वेदांत और सांख्य को पढ़ाया जाता था साथ ही यहा खगोलशास्त्र का भी अध्ययन कराया जाता था। विश्वविद्यालय में ३ लाख से अधिक पुस्तके थी जो पुस्तकालय में रखी हुई थीं। बख्तियार खिलजी द्वारा 1200 CE में इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया गया था तथा पुस्तकालय में आग लगा दी गयी थी।
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