भारत के इतिहास में कई युद्ध हुए है उन्ही मेसे एक है महाभारत का युद्ध जिसमे लाखो लोगो की जान गयी थी। यह युद्ध पांडव और कौरवों के बीच लड़ा गया था जिसमे पांडवो की विजय हुई थी, यह कहानी तो लगभग हर किसी को पता है कि पांडवो ने कौरवों को हराकर विजय प्राप्त की थी और हस्तिनापुर का शासन अपने हाथो में ले लिए था। पर आज हम इसके आगे की कहानी बताने वाले हैं जिसमे पांडव और द्रौपदी की मृत्यु तक की कहानी पढने को मिलेगी।
पांडव और द्रौपदी की मृत्यु कैसे हुई थी?
युद्ध के बाद युधिष्ठिर राजा बने और अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने लगे। फिर एक दिन भगवान कृष्ण का धरती लोक छोड़ कर जाने का समय आ गया था उन्होंने पैर में तीर लगने के बाद अलौकिक शरीर का त्याग कर दिया था। इसकी सुचना पांड्वो को मिली यह सुनते ही वे दुखी हुए और पांड्वो ने भी सशरीर स्वर्ग जाने की योजना बनाई और पांडव और द्रौपदी अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज्य दे कर मेरु पर्वत कि और निकल गये, इन्होने सन्यासियों का भेष धारण किया और इनके साथ एक कुत्ता भी यात्रा पर निकल गया।
द्रोपती भी नहीं कर सकी थी यात्रा पूर्ण
यात्रा काफी लम्बी थी सभी थक गये थे पर रुके नही और आगे बढ़ते रहे फिर एकाएक द्रोपती रास्ते में गिर गयी और अपने प्राण त्याग दिए यह देख भीम युधिष्ठिर से सवाल करते हैं कि द्रोपती ने यात्रा पूर्ण करने से पहले ही अपने प्राण क्यों त्याग दिए? तो फिर युधिष्ठिर इस उत्तर देते हैं कि द्रोपती हम सभी की पत्नी थी पर वो केवल अर्जुन से प्रेम करती थी इस कारण उसके साथ यह हुआ है कि वह यात्रा पूर्ण नही कर सकी है।
बीच रास्ते में सहदेव भी गिर
फिर आगे चल कर सहदेव भी गिर कर अपने प्राण त्याग देते हैं यह देख भीम फिर युधिष्ठिर से प्रश्न करता है तब युधिष्ठिर कहते हैं कि सहदेव बड़ा बुद्धिमान था पर उसे इस बात का अभिमान था जिस कारण उससे साथ यह हुआ है। बाकि के लोगो ने अपनी यात्रा प्रारम्भ रखी पर आगे चल कर फिर नकुल भूमि पर गिर पड़े और उनकी भी यात्रा यही ख़त्म हो गयी, फिर से भीम के मन में प्रश्न आया की नकुल के साथ ऐसा क्यों हुआ जिसका जवाब युधिष्ठिर ने दिया कि नकुल अति सुंदर था पर उसे भी अपनी इस सुन्दरता का अत्यधिक घमंड था और इसी कारण वह अपनी यात्रा पूर्ण नही कर सका।
अर्जुन की भी यात्रा रह गयी अधूरी
अब यही घटना अर्जुन के साथ भी हो गयी की वो यात्रा पूर्ण करने से पहले ही अपने प्राण त्याग देते हैं इसका कारण युधिष्ठिर में बताया कि धनुर्विद्या में श्रेष्ठ होने के अभिमान के कारण अर्जुन इस यात्रा को पूर्ण नही कर सका है। भीम भी इस यात्रा को पूर्ण नही कर सके और यात्रा के बीच में ही गिर गये तभी युधिष्ठिर ने कहा कि भीम तुम्हे अपने बल का अभिमान है जिस कारण तुम भी इस यात्रा को पूर्ण करने में असमर्थ रहे हो।
युधिष्ठिर के साथ हुआ कुछ यह
अब इस यात्रा में केवल युधिष्ठिर और उनके साथ चल रहा कुता ही शेष रह गया था आगे चल कर स्वयं इंद्र उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपने यान में बैठने के लिए कहा और स्वर्ग चलने की बात कही तभी युधिष्ठिर ने कहा कि इस कुत्ते ने मेरा यात्रा में कही भी साथ नही छोड़ा है यह भी मेरे साथ स्वर्ग चलेगा और यह इस बात पर अडिग रहे। फिर उन्हें पता लगता है कि वह कुत्ता स्वयं धर्मराज है, यह देख युधिष्ठिर चौक गये फिर उन्होंने धर्मराज को प्रणाम किया और इंद्र के विमान में बैठ कर स्वर्ग लोक जाने लगे फिर उन्होंने इंद्र से बाकि पांड्वो और द्रोपती के बारे में पूछा तो उन्हें जवाब मिला कि वे नियत स्थान पर पहुँच चुके है।
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