हम जहाँ रहते है वह पृथ्वी इस ब्रह्माण्ड का एक छोटा से हिस्सा है। इस अनंत ब्रह्माण्ड में अनेकों तारें है जिसमे से एक हमारा सूर्य है जिसके आसपास नौ ग्रह परिक्रमा करते है। सारे ग्रह अपने अक्ष पर सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं व इनका आकार एवं संरचना एक दुसरे से भिन्न है। सूर्य (तारे) व उसके आसपास घूमने वाली खगोलीय वस्तुओं का समूह (जो तारे न हों, जैसे ग्रह, उपग्रह, उल्का, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह इत्यादि) मिलकर सौर मंडल बनाते हैं। अर्थात हमारे सूर्य और उसके ग्रहीय मंडलों से मिलकर हमारा सौर मंडल बनता है। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि Saurmandal Ka Sabse Bada Grah Kaun Sa Hai – हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह कौन सा है व उस पर उपस्थित विशालकाय लाल धब्बे का रहस्य।
सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह कौन सा है?
Saurmandal Ka Sabse Bada Grah Kaun Sa Hai: सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति है। यह सूर्य से पांचवा ग्रह है। यह एक गैसीय ग्रह है इस श्रेणी में शनि, वरुण और अरुण भी आते है। बृहस्पति को गुरु भी कहा जाता है। गुरु प्राचीनकाल से ही खगोलशास्त्रियों के लिए शोध का केंद्र रहा है। अंग्रेजी में बृहस्पति को जुपिटर (Jupiter) कहा जाता जाता है जोकि रोमन सभ्यता के एक देवता का नाम है। यह इतना बड़ा ग्रह है कि रात्रि में पृथ्वीवासी इसे बिना दूरबीन (यानि कि नग्न आँखों से) भी देख सकते हैं।
2018 के आंकड़ों के अनुसार बृहस्पति के कम से कम 79 चन्द्रमा (उपग्रह) हैं जिनमें वे चार बड़े चन्द्रमा भी शामिल हैं जिन्हें गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है।
बृहस्पति की संरचना –
बृहस्पति ग्रह का निर्माण गैसों व तरल पदार्थों से हुआ है। इसका ऊपरी वायुमंडल 88 से 92% हायड्रोजन से व 8-20% हीलियम से बना है। यह प्रतिशत अणुओं की मात्रा से बांटा गया है। और जब हम द्रव्यमान की बात करें तो हीलियम परमाणु का द्रव्यमान हायड्रोजन से चार गुना अधिक होता है। अगर द्रव्यमान के अनुपात में विभिन्न परमाणुओं का वर्णन किया जाए तो इसका 75% हायड्रोजन से और 24% द्रव्यमान हीलियम से एवं बाकि का 1% अन्य तत्वों से मिलकर बना है।
बृहस्पति पर उपस्थित विशालकाय लाल धब्बा
बृहस्पति ग्रह पर एक विशालकाय लाल धब्बा मौजूद है जिसे Great Red Spot कहा जाता है। यह कोई लाल रंग की चट्टान या लाल रंग का एक सामान्य निशान नहीं है अपितु एक निरंतर चलते रहने वाला प्रतिचक्रवातीय तूफान है। बृहस्पति की भूमध्य रेखा से यह 22 डिग्री दक्षिण में स्थित है एवं इतना बड़ा है कि हमारी पृथ्वी इसमें समा सकती है। यह कम से कम 400 वर्षों तक बना रहता है। इसका चित्र सर्वप्रथम 1831 में जर्मन के सैमुअल हेनरिक श्वाबे ने बनाया था। कहा जाता है कि सर्वप्रथम इसे 1655 में इटली के गियोवन्नी कैसिनी ने देखा था। 1878 में इसका वर्णन अमेरिकी खगोलशास्त्री कैर वाल्टर प्रिटचेट ने किया था। तभी से इसे निरंतर देखा जा व इसका अवलोकन किया जा रहा है।
यह इतना बड़ा है कि इसे भूआधारित दूरबीन के द्वारा भी देखा जा सकता है। 19वी सदी में इसकी लम्बाई लगभग 30000 मील थी और तब से ही यह सिकुड़ रहा है 1979 में इसकी लम्बाई 23,000 किमी यानि 14,500 मिल बताई गयी थी। 2012 से यह बहुत तेजी से छोटा होता जा रहा है लगभग 900 किलोमीटर प्रति वर्ष की रफ़्तार से।
FAQs
हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह शनि है। यह सूर्य से छठा ग्रह है एवं इसका औसत व्यास पृथ्वी से साढ़े 9 गुना बड़ा है।
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