वीर रस हिंदी भाषा के नौ रसों में से एक है। जब किसी कथन या कविता में वीरता का भाव परिलक्षित होता है, वहां पर वीर रस की ही उपस्थिति मानी जाती है। जब किसी युद्ध या किसी महान योद्धा के बारे में बताये जाने पर हमारे मन में जो भाव उपन्न होते है वो भी वीर रस ही होता है। आज यहाँ आपको वीर रस की परिभाषा, उदहारण एवं Veer Ras Ka Sthayi Bhav Kya Hai – वीर रस का स्थायी भाव क्या है? जानने को मिलेगा।
वीर रस उदहारण के तौर पर द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की इन पंक्तियों को पढने के बाद हमारे मन में भी वीर रस उत्पन्न होता है।
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।
आइये वीर रस के बारे में विस्तार से जानते है-
वीर रस की परिभाषा
जब किसी काव्य या रचना को पढते समय मान में उत्साह व उमंग का भाव उत्पन्न होता है, वहां वीर रस की उत्पत्ति मानी जाती है।
वीर रस के चार भेद बताये गए है जो कि युद्धवीर, दानवीर, दयावीर और धर्मवीर है।
इसके अतिरिक्त जब मन में युद्ध लड़ने की तत्परता हो तो युद्धवीर, दान करने की तत्परता हो तो दानवीर, दया करने की तत्परता हो तो दयावीर एवं धर्म करने की तत्परता हो तो धर्मवीर कहा जाता है।
Veer Ras Ka Sthayi Bhav Kya Hai?
वीरता में उत्साह का भाव प्रधान है। इसलिए वीर रस का स्थाई भाव उत्साह है।
FAQs
वीर रस के अनुसार वीर चार प्रकार के होते हैं जो कि युद्धवीर, दानवीर, दयावीर एवं धर्मवीर हैं।
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