अति सर्वत्र वर्जयेत पूरा श्लोक

अति सर्वत्र वर्जयेत पूरा श्लोक

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By Shubham Jadhav

अति सर्वत्र वर्जयेत पूरा श्लोक अर्थ जानने के लिए आप इस लेख की मदद ले सकते हैं।

अति सर्वत्र वर्जयेत पूरा श्लोक

यह चाणक्य नीति के तीसरे अध्याय का 12 वां श्लोक है। चाणक्य ने अपनी पुस्तक में कई ऐसी नीतियाँ साझा की है जो व्यक्ति के जीवन में महत्व रखती है तथा इन नीतियों के द्वारा वह सफल हो सकता है। चाणक्य बहुत ही बुद्धिमान तथा चतुर थे जो हर क्षेत्र के लिए नीतियाँ साझा कर चुके हैं जो आज भी प्रासंगिक है तथा उपयोग में ली जा सकती हैं। अगर आप भी जीवन में सफलता और सुकून पाना चाहते हैं तो आपको इन नीतियों को जरुर पढ़ना चाहिए।

अति रूपेण  वै सीता ह्यतिगर्वेण रावणः ।
अतिदानाद्  बलिर्बध्दो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् ।।

अर्थ – अति रूपवती होने के कारण माता सीता का हरण हुआ। अति गर्व के कारण ही रावण मारा गया और अति दानी होने की वजह से ही राजा बलि बन्धन मे पड गये थे। इसीलिए अति का सर्वत्र (हमेशा) त्याग किया जाना चाहिये ,अति कही भी किसी भी चीज की नही करनी चाहिए।

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