गंगा पुत्र किसे कहा जाता है?

गंगा पुत्र किसे कहा जाता है?

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By Shubham Jadhav

क्या आप जानते हैं कि गंगा पुत्र किसे कहा जाता है? अगर नहीं तो सी लेख को जरुर पढ़ें।

गंगा पुत्र किसे कहा जाता है?

भीष्म जिन्हें भीष्म पितामह भी कहा जाता है गंगा के पुत्र माने जाते हैं। भीष्म के पिता का नाम राजा शान्तनु था। भीष्म का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था। इनका मूल नाम देवव्रत था, इनके पिता इनकी पितृभक्त से काफी प्रसन्न थे जिस कारण उन्होंने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। इन्हें भीष्म प्रतिज्ञा के लिए भी जाना जाता है और इसी प्रतिज्ञा के कारण यह कभी राजा नहीं बनें थे हमेशा संरक्षक बन कर ही रहे थे। न ही इन्होने विवाह किया था और आजीवन ब्रह्मचारी ही रहें थे। महाभारत में भीष्म ने कौरवो का साथ दिया था और अधर्म का साथ देने के कारण ही वे मृत्यु को प्राप्त हुए थे।

महाभारत के युद्ध के समय भीष्म पितामह कौरवों की तरफ से सेनापति की भूमिका निभा रहें थे। भीष्म ने 10 दिन तक युद्ध किया था तथा दसवें दिन इच्छामृत्यु प्राप्त भीष्म पांडवों के विनय पर अपनी मृत्यु का रहस्य बताते हैं और भीष्म के सामने शिखंडी को उतारा जाता है। प्रतिज्ञा अनुसार भीष्म किसी स्त्री, वेश्या या नपुंसक व्यक्ति पर शस्त्र नहीं उठा सकते थे और शिखंडी नपुंसक जिस कारण भीष्म युद्ध हारे थे।

भीष्म पितामह से जुड़ी कहानियां

गंगा के स्वर्ग लोट जाने के बाद तनु, निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम करने लगे जिस कारण सत्यवती ने शांतनु से विवाह करने के लिए भीष्म के समक्ष अपने पुत्रों को ही हस्तिनापुर की गद्दी देने की शर्त रखी, जिसके बाद भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की और सत्यवती को लेकर राजमहल आ गए।

भीष्म ने अपने जीवन काल में कई अपराध किये थे, जैसे उन्होंने शक्ति के प्रयोग से गांधारी का जबरन विवाह धृतराष्ट्र से करवाया था, पिछले जन्म में शिष्ठ ऋषि की कामधेनु का हरण भी किया था इस कारण उन्हें मनुष्‍य योनि में जन्म लेना पड़ा था। भीष्म को इस लिय भी दोषी माना जाता है क्योकि द्रौपदी को निर्वस्त्र करते समय वह चुप थे और इस कृत्य का विरोध नहीं कर रहें थे।

भीष्म ने युधिष्ठिर को कई बातें बताई थी जैसे स्त्रियों से अधिक संपर्क से बचें, सुखों की लालसा में मर्यादा का त्याग नहीं करना चाहिए, स्वयं के गुणों का बखान नहीं करना चाहिए, गलत अचारण करने वाले व्यक्ति को कभी आश्रय नही देना चाहिए, विद्वानों का हमेशा सम्मान करना चाहिए, गुरुओ का सदा आदर करना चाहिए, अवसरों का उचित ध्यान रखना चाहिए आदि।

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