गांव का घर शीर्षक कविता में कवि ने ग्राम में आये उन परिवर्तनों का उल्लेख किया है जो की नकारात्मक हैं। धीरे धीरे करके गाँव भी शहर बनता जा रहा है। एक समय था जब गांव का घर घर लगता था पर अब सब कुछ बदल चूका है। बांस बल्ले मिटटी के बने घरों से हम जुड़े हुए रहते थे और आज के ये आधुनिक घर में कुछ अच्छा नहीं लगता। आज आप यहां जांयेंगे कि गांव का घर शीर्षक कविता के रचनाकार कौन है?
प्रश्न
गांव का घर शीर्षक कविता के रचनाकार कौन है?
उत्तर – गांव का घर शीर्षक कविता के रचयिता कवि ज्ञानेन्द्रपति हैं जो कि आधुनिक हिंदी के कवि हैं।
गाँव का घर शीर्षक कविता का सारांश
कवि कहते हैं कि गांव का घर जहां बुजुर्गों की खड़ाऊँ की आवाज़ से सभी सर्कार सटक जाते थे। किसी का नाम लिए बिना इशारे में ही काम हो जाया करता था। चौखट पर बड़े बूढ़े खांसकर आवाज़ देते थे। अभिभावक के इशारे पर सारा घर नाचता था। गांव के घर के चौखट शंख के चिन्ह की तरह होते थे और चौखट के बगल में गेरू से पुती दीवाल होती थी जहां दूधवाले ने कितने दिन दूध दिया उसके निशान लगा दिए जाते थे। ये सब कवि ने अपने बचपन में देखा परन्तु अब सब कुछ बदल चूका है। न पंच ईमानदार रहे, लोकगीतों की जन्मभूमि पर शोक गीत सुनाई पड़ता है। बिना गाय सब सुना सुना लगता है। सर्कस कब का मर गया है ऐसा लगता है मानो हाथी के दांत गिर गए हों। गांवों में शहर की कुरीतियां फैलती जा रही हैं।
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