कनकधारा स्तोत्र के फायदे

कनकधारा स्तोत्र एवं उसके फायदे, अर्थ सहित

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By Shubham Jadhav

कनकधारा स्तोत्र क्या है और इसका जाप क्यों किया जाता है इस बारें में आपको सम्पूर्ण जानकारी यहाँ मिल जाएगी। कनकधारा स्तोत्र के फायदे अर्थ सहित जानने के लिए इस लेख को आखिर तक जरुर पढ़े।

कनकधारा स्तोत्र अर्थ सहित

ॐ अङ्गं हरै ( हरेः) पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुलाभरणं तमालं |
अंगीकृताऽखिलविभूतिरपाँगलीलामाँगल्यदाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || १ ||

जिस प्रकार मादा भौरा फूलो को अपना घर बना कर वहा आश्रय लेता है उसी तरह संपूर्ण ऐश्वर्य जिस हरि में निवास करता है, उसी प्रकार संपूर्ण मंगली की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का हर कटाक्ष मेरे लिए मंगल दायी है।

मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणिहितानि गताऽगतानि |
मलार्दशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || २ ||

जिस तरह भ्रमरी कमल के पुष्प पर मंडराती है उसी तरह श्री हरी के मुखार विंद की और प्रेम के साथ जाती हुई परन्तु लज्जा का ध्यान रखते हुए वापस लोटने वाली समुद्र कन्या लक्ष्मी माता मुझ पर कृपा करे और धन सम्पत्ति प्रदान करें।

विश्वामरेन्द्र पदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धंमिन्दीवरोदर सहोदरमिन्दीरायाः || ३ ||

लक्ष्मी ही वह देवी है जो देवताओ के अधिपति इंद्र को पद वैभव देने में सक्षम है और श्री को आनन्द प्रदान करने वाली है जिनका रूप नीलकमल के अंदर मोजूद सुंदर भाग की तरह है, उस माता लक्ष्मी की अधखुले नेत्रों वाली दृष्टि मुझ पर थोड़ी देर के लिए जरुर पढ़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदामुकुन्दमानन्द कंदमनिमेषमनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिकपद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ४ ||

भगवान विष्णु की अर्धांगिनी माता लक्ष्मी के नेत्र हमे ऐश्वर्य प्रदान करें। लक्ष्मी जी के नयन जो प्रेम के वसीभूत है तथा अधखुले है वह नयन कुंद को अपने निकट पाकर कुछ तिरछे हो जाते हैं।

बाह्यन्तरे मुरजितः(मधुजितः) श्रुतकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति |
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु में कमलालयायाः || ५ ||

मधुसूदन जी की कौतूब मणि से सुशोभित भगवान जो इंद्रनील मयी हरावली की तरह सुशोभित है और उनके मन में भी जो प्रेम का संचार कर रही है वो कमल कुंज वासिनी कमला की कटाक्ष माला मेरा कल्याण करे।

कालाम्बुदालि ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव |
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गवनंदनायाः || ६ ||

जिस तरह बिजली चमकती है उसी प्रकार माता लक्ष्मी जो भगवान विष्णु की काली मेघ माला के ही समान सुंदर अक्ष स्थल पर प्रकाशित होती है, इन्होने ही अवीर भाव से रघुवंश को आनंदित कर दिया था और यही समस्त लोक की जननी है इस माता की मूर्ति मेरा कल्याण करें।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावान्मांगल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः || ७ ||

लक्ष्मी जी जो समुद्र पुत्र है उस माता की मंद आलस मंथर और अर्धोनिलित दृष्टि जो कामदेव ने मंगलमय ईश्वर मधुसूदन के हृदय में पहली बार स्थान प्राप्त कर सकी है वो दृष्टि मुझ पर पड़े।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशो विषण्णे |
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः || ८ ||

विष्णु जी जिनके नेत्र मेघ की तरह है, जिनकी दया अनुकूल पावन से प्रेरित है वह धूप की तरह उपस्थित दुष्कर्म को चिरकाल के लिए दूर हटाकर अपने धर्ममय जप द्वारा मुझ जैसी जातक पर जलधारा की तरह धनरूपी वर्षा करें।

इष्टाविषिश्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते |
दृष्टिः प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः || ९ ||

दया दृष्टि के प्रभाव से प्रीति पात्र होकर स्वर्ग पद को आसानी से प्राप्त कर लेने वाले विशिष्ट बुद्धि वाले इंसान सहज रूप से यह सब प्राप्त कर लेता हैं, कमल गर्भ के समान कांतिमय इस दयादृष्टि को मुझ पर बनाए रखे जो पद्मासना पदमा की है।

गीर्देवतेति गरुड़ध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति |
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै || १० ||

में नमस्कार करता हु उस माता को भगवान नारायण की प्रिय स्त्री है जो सृष्टि लीला के समय भगवान ब्रह्मा की भ्रम शक्ति के समान है, यही पालन लीला के समान हरि की पत्नी वैष्णवी शक्ति है और यही प्रलय लीला के काल में भगवती दुर्गा मां पार्वती रूद्र शक्ति है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै |
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै || ११ ||

है माँ! शुभ कामो का फल देने वाली माता आपको प्रणाम। रमणीय गुणों के सिंधु रुपा प्रीति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करने वाली शक्ति माता लक्ष्मी को नमस्कार। पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिय को प्रणाम है।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै |
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै || १२ ||

नमस्कार है उस कमल वंदना कमल । नमस्कार है उस सिर सिंदूर सभ्यता देवी को। नमस्कार है उस चंद्रमा और सुधा की सभी बहनों को । नमस्कार है उस भगवान विष्णु की वल्लभा को ।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥

प्रणाम है उस कमल के समान नयनो वाली माता को । जो सुख संपत्ति प्रदान करती है, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने का कार्य करती है , पापो को हरने का काम करती है, मुझे उस माता के चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता है।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै – स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥

में उस देवी का मन, वाणी, और शरीर से भजन कर रहा हु जिस देवी की कृपा से कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए मनोरथ तथा सम्पत्ति में विकास करती है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥

है माता तुम भगवती हरी प्रिया हो जो कमल में निवास करती है तुम्हारे हाथो में नीलकमल है तुम्हारे वस्त्र अत्यंत उज्जवल है साथ ही तुम गंध और माला सुशोभित है साथी ही आपकी झांकी भी बहुत मनोरम्य है त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी माता लक्ष्मी मुझसे प्रसन्न हो।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट – स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष – लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥

में प्रातः काल में उस शिर सागर की पुत्री जगत जननी को प्रमाण करता हु जो दिगज्जो द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगो का अभिषेक संपन्न करती है।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥

में आशा करता हु की करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों की तरह आप मुझे देखे और में कमल नयन केशव के कमलनीय कामनीय कमले में सभी में अग्र गण्य हु और आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हु।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥

जो भी इंसान इस स्तुति को रोजाना जपता है वो इस भूतल पर बहुत ही महान है तथा गुणवान होने के साथ साथ अत्यंत सौभाग्यशाली है।

कनकधारा स्तोत्र के फायदे

कनक धारा स्तोत्र का जाप रोजाना कर सकते हैं इससे माता लक्ष्मी आपसे प्रसन्न रहती है और आप पर उनकी कृपा बनी रहती है जिससे की आप आर्थिक संकट से बचे रहते हैं और आपको सुख समृद्धि तथा धन प्राप्ति होती है। कनकधारा स्तोत्र के फायदे अपने मित्रो के साथ जरुर साझा करें।

कनकधारा स्तोत्र का रोज कितना पाठ करना चाहिए\

कनकधारा स्त्रोत का पाठ आपको रोज करना चाहिए प्रतिदिन नियमित रूप से 13 पाठ करने चाहिए।

FAQs

कनकधारा स्त्रोत पढ़ने से क्या लाभ होता है?

कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने से लक्ष्मी माता खुश होती हैं और धन की प्राप्ति होती है।

कनकधारा स्तोत्र का रोज कितना पाठ करना चाहिए

कनकधारा स्त्रोत का पाठ आपको रोज करना चाहिए प्रतिदिन नियमित रूप से 13 पाठ करने चाहिए।

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