प्राचीन काल से ही संस्कृत वाङ्मय में लय को दर्शाने के लिये छन्द का उपयोग होता है। छन्दशास्त्र के अंतर्गत छन्दों की रचना और गुण-अवगुण आदि का अध्ययन किया जाता है। पद्यरचना छन्दशास्त्र के बिना सम्भव नही है। उसी प्रकार एक छंद होता है केचुआ छंद क्या आप जानते है की केचुआ छंद किसकी देन है? यदि नही जानते है तो अभी आसानी से जान लीजिये की केचुआ छंद किसकी देन है?
केचुआ छंद किसकी देन है?
केचुआ छंद ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला‘ देन है जो एक महान कवि थे। इन्होने अपनी कविताओं में भावनाओं को केचुआ छंद में प्रस्तुत किया है। केचुआ छंद को रबर छंद और मुक्त छंद भी कहते है। इस छंद में आप नियमो से मुक्त होते है और अनपी रचना को एक रबर की तरह कितना भी खीच सकते है इसीलिए इसे बर छंद और मुक्त छंद भी कहा जाता है।
केचुआ छंद किसे कहते है?
केंचुआ छंद एक प्रकार का मुक्त छंद होता है।इसमें छंद के नियमों से मुक्त रहकर काव्य की रचना की जाती है। इसकी रचनाएँ छंद के नियमों से स्वतंत्रता तो देती है पर उनमे शब्दों के अनुशासन का ध्यान रखना होता है।
मुक्त छंद का उदाहरण –
वह आता
दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता,
चितकबरे चाँद को छेड़ो मत
शकुंतला-लालित-मृगछौना-सा अलबेला है।
प्रणय के प्रथम चुंबन-सा
लुके-छिपे फेंके इशारे-सा कितना भोला है।
टाँग रहा किरणों के झालर शयनकक्ष में चौबारा
ओ मत्सरी, विद्वेषी ! द्वेषानल में जलना अशोभन है।
दक्षिण हस्त से यदि रहोगे कार्यरत
तो पहनायेगा चाँद कभी न कभी जयमाला।
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