इस लेखे में आप जानेंगे कि मानव जीवन में गुरु की आवश्यकता क्यों है।
मानव जीवन में गुरु की आवश्यकता
भारत की संस्कृति में गुरु को भगवान का दर्जा दिया है, गुरु ही हमे ज्ञान प्रदान करते हैं जिसके आधार पर हम इस जीवन में सफल हो पाते हैं। ज्ञान सबसे ज्यादा जरुरी है जिसकी पूर्ति केवल गुरु के द्वारा ही हो सकती है। ज्ञान के साथ साथ गुरु हमे उस परमेश्वर से भी अवगत करवाते हैं जिसने इस संसार का निर्माण किया है, इसीलिए गुरु का हमेशा से ही सम्मान किया जाता है।
प्राचीन काल में गुरुकुल हुआ करते थे जहा शिक्षा के साथ साथ धर्म का भी ज्ञान करवाया जाता था तभी से गुरुओ को सर्वश्रेष्ट माना जाता है। किसी भी इन्सान का प्रथम गुरु उसकी माँ को कहा गया है क्योकि माँ ही सबसे पहले अपने बच्चे को ज्ञान प्रदान करती है गुरु माँ के बाद जीवन में आते हैं।
गुरु शिक्षा के अलावा हमे जीवन जीने की कला, परमात्मा का महत्व, सम्मान करने की शिक्षा, संस्कार, ज्ञान विज्ञान से भी अवगत करवाते हैं ताकि हम समाज में सम्मान पा सकें और जीवन में आने वाली समस्याओ से निपट सके और अपने परिवार का पालन पोषण कर सके, धर्म संस्कृति को बचा सके तथा गलत का विरोध कर सकें। यह सब ज्ञान गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है।
आज के समय में शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है पर गुरु अपने कार्यो को पूरी निष्ठा से कर रहे वो ज्ञान विज्ञान, संस्कार को बाटने का काम कर है पर शिक्षा को कुछ लोगो ने स्वार्थ के लिए इतना महंगा कर दिया है कि बहुत से लोग आज भी अशिक्षित है।
शिक्षा के बिना आप जीवन में सफल नही हो सकेंगे आप न धन अर्जित कर सकेंगे ना समाज में सम्मान पा सकेंगे, ज्ञान ही वो पूंजी है जिसे कोई चुरा नही सकता न मिटा सकता है इसके द्वारा आप किसी भी शिखर तक पहुच सकतें हैं।
आज के समय में आप किसी भी चिकित्सक, कर्मचारी सेवाभावी से मिलते हैं उनके सफल होने के पीछे गुरु का ही हाथ होता है और गुरु के कारण आज वो इस संसार में लोगो की मदद कर पा रहें है और अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर पा रहे हैं।
गुरु के लिए श्लोक
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
जिसका अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्म है जो सृष्टि के रचियता हैं। गुरु ही श्रष्टि के पालक हैं जैसे कि श्री विष्णु जी। गुरु ही इस श्रष्टि के संहारक भी हैं जैसे श्री शिव। गुरु साक्षात पूर्ण ब्रह्म हैं जिनको अभिवादन है भाव है ईश्वर तुल्य ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।
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