अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् का अर्थ

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By Shubham Jadhav

उपरोक्त श्लोक सुन्दरकाण्ड से लिया गया है, सुंदरकांड वाल्मीकि द्वारा लिखा गया है जिसमे हनुमान जी के शौर्य पराक्रम को दर्शाया गया है। इस काण्ड में हनुमान जी के द्वारा किये गये महान कार्यो का वर्णन किया गया है। इस काण्ड में लंका प्रस्थान, दहन और लंका से वापसी तक के घटनाक्रम बताएं गये हैं। रामायण का पांचवा कांड ही सुन्दरकाण्ड है। आगे आप जानेंगे कि अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् का अर्थ क्या होता है।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् का अर्थ

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।

अर्थ – अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कांतियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।

सुंदरकांड पाठ के लाभ

  • सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से जीवन की समस्याओं का अंत हो जाता है।
  • इससे शारीरिक तथा मानसिक शक्ति प्रदान होती है।
  • सकारात्मकता बनी रहती है तथा ऊर्जावान महसूस होता है।
  • हनुमान जी शत्रुओ से तथा आने वाली हर विपत्ति से रक्षा करते हैं।
  • अशुभ ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव से सुरक्षा मिलती है।
  • सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

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