गुरु के बिना जीवन सफल नही है, हम सही मार्ग का चयन गुरु के मार्गदर्शन में ही कर पाते है यदि हमारे जीवन में गुरु नही है तो हम अवश्य ही मार्ग से विचलित हो सकते है। किस भी महान व्यक्ति के पीछे उसके गुरु का परिश्रम भी होता है। इस संसार में गुरु को भगवान के समकक्ष माना गया है। आज हम जानेंगे की सूरदास के गुरु कौन थे? ( Surdas Ke Guru Kaun The )
सूरदास कौन थे?
सूरदास ब्रजभाषा के कवि है, इनका जन्म 1478 में मथुरा- आगरा मार्ग के किनारे पर स्तिथ रेणुका गाँव में हुआ था। सूरदास जी अंधे थे परन्तु यह कोई नही जनता है की यह जन्म से अंधे थे या नही। सूरदास जी कृष्ण भक्त थे । इनके द्वारा रचित काव्यग्रंथ ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’ एवं ‘साहित्य लहरी’ हिंदी साहित्य में बहुत महत्त्व रखती है। सूरदास जी ने कभी विवाह नही किया था यह आजीवन अविवाहित रहे थे। सूरदास जी का निधन1583 ईस्वी में परसौली में हुआ।
सूरदास के गुरु कौन थे – Surdas Ke Guru Kaun The?
सूरदास के गुरु का नाम वल्लभाचार्य थे। वल्लभाचार्य सूरदास से उम्र में केवल दस दिन ही बड़े थे, वल्लभसम्प्रदाय वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते थे। जब सूरदास आगरा के पास गऊघाट पर रहा करते थे तब उनकी भेट हुई थी और वे उनके शिष्य बन गये थे।
सूरदास का जीवन परिचय
वल्लभाचार्य जी का जन्म 1479 में श्रीलक्ष्मणभट्टजी के यहाँ छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर के समीप हुआ था । वल्लभाचार्य के द्वारा रचित ‘षोडश ग्रन्थ’ काफी प्रसिद्द ग्रन्थ है। वल्लभाचार्य ने एक दिन एक बच्चे को यमुना के तट पर रोते हुए देखा तो उन्होंने उससे कहा की दुख में कृष्ण की लीला का गायन करना चाहिये तभी उस बालक ने कहा की में अंधा क्या जानू कृष्ण लीला बस तभी से सूरदास जी और वल्लभाचार्य जी साथ रहने लगे और सूरदास जी ने उन्हें अपना गुरु मान लिया।
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