आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ और प्रगतिशील, अत: ऐसा समाज जो श्रेष्ठ और प्रगतिशील हो। आर्य समाज को हिन्दू धर्म में प्रचलित कुरीतियों को समाप्त करने एवं धर्म सुधार के लिए एक आन्दोलन के रूप में शुरू किया गया था। यह आन्दोलन हिन्दू धर्म को पाश्चात्य संस्कृति से हुए दुष्प्रभावों से बाहर निकालने के लिए हुआ था। इस आन्दोलन में जातिगत भेदभाव एवं छुआछुत का विरोध करना तथा स्त्रियों और शुद्र जाति के लोगों को वेद पढने का अधिकार दिलवाया गया। इस लेख में हम जानेंगे कि Arya Samaj Ke Sansthapak Kaun The – आर्य समाज के संस्थापक कौन थे एवं आर्य समाज का हिदू धर्म के उत्थान में क्या सहयोग रहा।
Arya Samaj Ke Sansthapak Kaun The
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे: आर्य समाज को एक आन्दोलन के रूप में शुरू किया गया था। सन 1875 में स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुंबई में इसकी स्थापना की थी। इससे पहले स्वामी जी ने 7 सितम्बर 1872 को बिहार के ‘आरा’ नामक स्थान पर भी आर्यसमाज की स्थापना की थी। ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार आर्य समाज की प्रथम स्थापना इसी दिन हुई थी। आर्य समाज का उद्देश्य समाज को वेदों के अनुरूप चलाना है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं योगिराज श्री कृष्ण आर्य समाज के आदर्श है।
आर्य समाज के प्रसिद्ध सदस्य स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, चौधरी छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, बाबा रामदेव आदि हैं।
आर्य समाज से जुड़े प्रमुख तथ्य –
- आर्य समाज का आदर्श वाक्य कृण्वन्तो विश्वमार्यम् है, जिसका अर्थ है – विश्व को आर्य बनाते चलो।
- आर्य समाज के अनुसार ईश्वर का सबसे सर्वश्रेष्ठ नाम ओम् है।
- आर्य समाज के अनुसार मनुष्य की जाति उसके कर्म से निर्धारित होती है, जन्म से नहीं।
- आर्य समाज के अनुसार यह सृष्टि 04 अरब 32 करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थी जोकि प्रलय का समय भी है।
- आर्य समाज, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को मानता है।
FAQs
आर्य समाज की स्थापना का श्रेय स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को जाता है। उन्होंने सन 1875 में बम्बई में मथुरा के स्वामी विरजानन्द की प्रेरणा से आर्य समाज की स्थापना थी।
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