Upanayan Sanskar Kya Hai in Hindi: सनातन हिंदू धर्म विज्ञान एवं पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। हिन्दू धर्म का मुख्य आधार इसके वेद उपनिषद् और प्राचीन ग्रन्थ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसकी स्थापना देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा की गयी है। हिन्दू धर्म के रीतिरिवाज और त्योहारों का कुछ ना कुछ वैज्ञानिक महत्व अवश्य है जिसके कारण ही इसका मूल सनातनी स्वरूप समाप्त नहीं हुआ है। हिंदू धर्मग्रंथों में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बताये गए है। ये 16 संस्कार मनुष्य को अपने जीवन के विकास में सहायता करते है। इस पोस्ट में आप जानेंगे हिन्दू धर्म के प्रमुख संस्कारों के नाम और उपनयन संस्कार क्या है –
16 संस्कारो के नाम
जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले 16 संस्कार क्रमशः निम्नानुसार है –
(1) गर्भाधान संस्कार,
(2) पुंसवन संस्कार,
(3) सीमन्तोन्नयन संस्कार,
(4) जातकर्म संस्कार,
(5) नामकरण संस्कार,
(6) निष्क्रमण संस्कार,
(7) अन्नप्राशन संस्कार,
(8) मुंडन संस्कार,
(9) कर्णवेधन संस्कार,
(10) विद्यारंभ संस्कार,
(11) उपनयन संस्कार,
(12) वेदारंभ संस्कार,
(13) केशांत संस्कार,
(14) सम्वर्तन संस्कार,
(15) विवाह संस्कार
(16) अन्त्येष्टी संस्कार
लेकिन इस लेख में हम विस्तार से केवल यह जानेंगे कि उपनयन संस्कार क्या है?
उपनयन संस्कार क्या है?
उपनयन संस्कार हिन्दू धर्म में बताये गए 16 संस्कारों में से एक है। इसे सभी संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन समय में यह संस्कार वर्ण के आधार पर किया जाता था। यह संस्कार तब किया जाता है जब बालक ज्ञान प्राप्त करने योग्य हो जाता है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेजने से पहले यह संस्कार किया जाता है। सामाजिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण जाति के बालक को 8 वर्ष में, क्षत्रिय बालक को 11 वर्ष एवं वैश्य जाति के बालक का 15 वर्ष में उपनयन संस्कार किया जाता है। प्राचीन समय में जिस बालक का उपनयन संस्कार नहीं होता था उसे मुर्ख की श्रेणी में रखा जाता था।
उपनयन संस्कार की विधि –
इस संस्कार में बालक को जनेऊ पहनाया जाता है, जो सूत से बनी होती है। इसमें बालक को उसके गुरु द्वारा मंत्र और दीक्षा के बारे में बताया जाता है। बालकों के अलावा बालिकाओं के उपनयन संस्कार का विधान भी कुछ ग्रंथो में मिलता है लेकिन सिर्फ उसी बालिका का उपनयन संस्कार किया जाता है जो आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्रण करती है। अविवाहित बालक 3 धागों वाली जनेऊ पहनते है और विवाहित पुरुष 6 धागों से बनी जनेऊ पहनते है जिसमे हल्दी लगी होती है और उसे यह जनेऊ सम्पूर्ण जीवन पहनकर रखना चाहिए। जनेऊ को ब्रह्मसूत्र भी कहा जाता है इससे जुड़े कुछ नियम भी गुरु द्वारा बताये जाते है। इस संस्कार के समय बालक का मुंडन भी किया जाता है। इसके उपरांत उसे कम से कम कपडे पहनकर अपने परिजनों के पास भिक्षा लेने भेजा जाता है।
उपनयन संस्कार का महत्व
उपनयन संस्कार युवा अवस्था में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, इस संस्कार का लक्ष्य होता कि शिक्षा का आरम्भ करना तथा मनुष्य के जीवन में आने वाले हर चरण को अध्ययन के माध्यम से समझना और ज्ञान अर्जित करना। इस संस्कार के बाद व्यक्ति जीवन को नियमो के साथ और अच्छे से व्यतीत कर पाता है। गुरु अपने छात्रो के साथ रह कर उन्हें शिक्षा देते हैं और हमेशा साथ रहने के कारण वह उन्हें हर समय संस्कार और शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। उपनयन का अर्थ इ समीप होता है, और गुरुओ के समीप रहने से सकारात्मकता रहती है तथा जीवन में आ उन्नति करना सरल हो जाता है। हर युग में ज्ञान और शिक्षा को महत्वपूर्ण माना गया है, तथा हिन्दू धर्म के वर्षो पुराने ग्रंथो में भी इसके बारें में काफी कुछ लिखा गया है।
उपनयन संस्कार कब होता है?
उपनयन संस्कार की उम्र वर्णों के आधार पर की जाती थी जैसे ब्राह्मण वर्ण के जातकों का 8वें वर्ष में तो क्षत्रिय जातकों का 11वें एवं वैश्य जातकों का उपनयन 12हवें वर्ष में किया जाता था इसके अलावा शूद्र वर्ण व कन्याएं उपनयन संस्कारका अधिकार नहीं रखती थी। जो सही समय पर इस संस्कार का पालन नहीं करता था उसे व्रात्य जहा जाता था।
FAQs
उपनयन संस्कार में शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा प्राप्त होती है एवं उसके बाद यज्ञोपवीत / जनेऊ धारण किया जाता है। तत्पश्चात वह गुरु के पास जाकर वेदों का अध्ययन करता है। यह मान्यता है कि उपनयन संस्कार करने से से बच्चे की न केवल भौतिक, बल्कि आध्यात्मिक प्रगति भी अच्छी तरह से होती है।
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