Biography Of Swami Vivekananda : भारत महापुरुषो की धरती है यहाँ कई महापुरुषो ने जन्म लिया है जिन्होंने देश विदेश में भारत का नाम रौशन किया है, उन्ही मे से एक थे स्वामी विवेकानंद जो अपने व्यक्तित्व के लिए आज पुरे विश्व में जाने जाते हैं। आगे इस लेख में आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) पढ़ने के लिए मिल जाएगा। स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय अगर अच्छा लगे तो इसे जरुर शेयर करें।
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay)
स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था, उन्हें राजस्थान के शेखावटी के राजा अजित सिंह ने स्वामी विवेकानंद नाम दिया था, इसके अलावा उन्हें सच्चिदानंद और विविदिषानंद से भी पुकारा जाता रहा है।
ज्ञानग्रंथ का WhatsApp Channel ज्वाइन करिये!इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था, उस समय कोलकाता को कलकत्ता कहा जाता था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता जी का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद कुल 9 भाई बहन थे। स्वामी विवेकानंद को उनके चरित्र तथा उनके महत्वकांक्षी होने के लिए जाना जाता है, यह आध्यात्मिक कार्य और सनातन धर्म को बढ़ावा देने का काम करते थे।
स्वामी विवेकानंद ने योग को काफी प्रचलित किया इसीलिए इनके जन्मदिन को योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। तथा उन्होंने उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत नारा भी दिया था जो आज भी युवाओ के लिए सकरात्मक कार्य करता है।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूशन में प्रवेश लेते समय स्वामी विवेकानंद की उम्र 8 वर्ष थी। 1879 में कलकत्ता लोटने के बाद इन्होने प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया जिसके बाद मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की जिसमे इन्हें काफी अच्छे अंक प्राप्त हुए थे और और 1884 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इन्हें बचपन से ही धार्मिक कार्यक्रम तथा सनातन में रुचि थी इसीलिए यह हिन्दू धर्म की पुस्तके, वेद, ग्रन्थ, पुराण, काव्य आदि पढ़ा करते थे। यह मानसिक तथा शरीरिक दोनों कार्यो पर समानता से ध्यान देते थे तथा प्रतिदिन व्यायाम किया करते थे, यह बचपन से बुद्धिमान थे तथा महाभारत, रामायण जैसे काव्य और ग्रंथो को पढ़ चुके थे जिससे ये काफी प्रभावित थे। इनकी याददाश्त काफी मजबूत थी जिस कारण यह एक बार जो पढ़ लेते थे उसे कभी नही भूलते थे।
रामकृष्ण परमहंस से मिलन
स्वामी विवेकानंद ने 25 साल की उम्र में संत बनने का निर्णय ले लिया था, जब वह विद्यार्थी थे तब उनकी मुलाकात महा ऋषि देवेंद्र नाथ ठाकुर से हुई थी उन्होंने विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस से मिलने के लिए कहा था ताकि विवेकानंद अपने मन में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर खोज सके। रामकृष्ण परमहंस का जीवन ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधना में ही गुजरा, वे मानवता के लिए काम करने वाली संत थे जो एक अच्छे विचारक के रूप में भी काम करते थे। इनका जन्म जन्म १८ फ़रवरी १८३६ को बंगाल प्रांत में हुआ था। स्वामी विवेकानंद जी बहुत ही जिज्ञासु थे जिस कारण वे रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य भी बन गये और उन्हें आत्मज्ञान, धर्म ज्ञान उन्ही से प्राप्त हुआ था। 1885 में कैंसर के कारण रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गयी थी।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, इसकी स्थापना 1 मई 1897 में की गयी थी इसका लक्ष्य अस्पताल, स्कूल और कॉलेजों का निर्माण करना था। इस मिशन के बाद विवेकानंद जी ने सन 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की ।
यात्राएं
विवेकानंद जी काफी यात्राएं कर चुके थे वह महलो में जाना, गरीबो से मिलना, धार्मिक स्थलों पर जाना जैसे वाराणसी, अयोध्या, आगरा, वृन्दावन काफी पसंद करते थे , उनका मानना था की ऐसा करने से समाज और धर्म का ज्ञान मिलता है व किस प्रकार के परिवर्तनो की आवश्यकता है इसका पता लगता है।
इनकी पहली यात्रा ऋषिकेश की थी जो इन्होने 1888 में अपने शिष्य शरदचंद के साथ की थी। इसके बाद 1890 में स्वामी ने अयोध्या से नैनीताल पैदल यात्रा की थी और इस बिच वे कई प्रमुख जगहों पर भी गये थे। इनकी तीसरी यात्रा उत्तराखंड की थी जो 1897 की बात है जब इन्होंने गुफा में ध्यान लगाया था। तथा एक यात्रा इन्होने हिमालय की भी की थी।
शिकागो भाषण
विवेकानंद जी अपने शिकागो, अमेरिका भाषण के बाद पुरे विश्व में अत्यधिक प्रसिद्ध हो गये थे क्योकि उस भाषण में उन्होंने अध्यात्म, सनातन धर्म, वैदिक दर्शन की बात की थी। यह भाषण उन्होंने September 11, 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन के दोरान दिया था उन्होंने भाषण की शुरुवात “My dear Brothers and Sisters of America” से की थी जिसके बाद पुरे हॉल में तालियाँ गूंजने लगी, जिसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण को प्रारम्भ किया और भारत देश की संस्कृति का वर्णन किया और सनातन हिन्दू धर्म की विशेषताएँ बताते हुए भावना व्यक्त करते हुए धन्यवाद कह कर सपने भाषण को समाप्त किया जिसके बाद भी पुरे हॉल में तालियाँ गूंजने लगी। उनका यह भाषण आज भी बहुत प्रसिद्ध है जिसने देश विदेश में भारत की संस्कृति की सम्मान दिलाया और भारत का नाम रोशन किया।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु
How Swami Vivekananda Died: स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी इस समय उनकी उम्र मात्र 39 वर्ष थी, रात के करीब 9.10 बजे इन्होने महा समाधि ली थी। इस दिन की शुरुआत उन्होंने अपने प्रतिदिन के कार्य जैसे ध्यान लगाना, बच्चो को शिक्षा देना से ही की थी। जब वह विद्यार्थियों को यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण की शिक्षा दे कर अपने कमरे में आराम करने गये तभी आराम करते समय उन्होंने महा समाधी ली। कहा जाता है कि स्वामी जी को कई प्रकार की गंभीर बीमारीया थी जिस कारण कम उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी।
स्वामी विवेकानंद के सुविचार Swami Vivekananda quotes in Hindi
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते हैं तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- “दिन में आप एक बार स्वयं से बात करें, अन्यथा आप एक
बेहतरीन इंसान से मिलने का मौका चूक जाएंगे।” - “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।”
- हम जो भी हैं, वैसा हमारे विचारो ने बनाया हैं, इसीलिए अपने विचारो पर कंट्रोल करे। शब्द तो बाद में आते हैं, विचार पहले और दूर तक जाते हैं।
- जीवन का रास्ता स्वयं बना बनाया नहीं मिलता इसे बनाना पड़ता है जिसने जैसा मार्ग बनाया उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।
- हमें ऐसी शिक्षा चाहिए,
जिससे चरित्र का निर्माण हो,
मन की शक्ति बड़े,
बुद्धि का विकास हो
और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके। - यह कभी मत कहो कि ‘मैं नहीं कर सकता’, क्योंकि आप अनंत हैं। आप कुछ भी कर सकते हैं।
- हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है,
इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं। - “सोच भले ही नयी रखो मगर संस्कार हमेशा पुराने होने चहिये।”
निष्कर्ष:
स्वामी विवेकानंद की जीवन शैली और भाषा के प्रयोग ने सबको ही मंत्रमुग्ध किया है। आज भी वे अपने विचारों के कारण जग प्रसिद्ध हैं। इनके जन्मदिवस के अवसर पर सूर्य नमस्कार दिवस एवं युवा दिवस मनाया जाता है। वे भले ही इस संसार में न हो फिर भी उनका नाम हमारे बिच है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा, डोनाल्ड ट्रम्प एवं अन्य विदेशी नामचीन व्यक्ति भी इनका नाम सम्मानपूर्वक लेते हैं एवं इनकी तारीफे करते नहीं थकते।
FAQs
स्वामी विवेकानंद की उनके गुरू से पहली मुलाक़ात नवंबर 1881 में हुई थी।
स्वामी विवेकानंद तीन घंटे ध्यान करते थे।
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