भारत में कई प्रथाएं आज भी मानी जाती है और कई प्रथाएँ तो बंद हो चुकी है, यहाँ कु प्रथाओ को प्रतिबंधित कर दिया गया है और सरकार इनके लिए नये कानून भी बनाती रहती है ताकि लोगो को एक अच्छा जीवन मिल सके, प्राचीन काल में आज के समय की तुलना में काफी दर्दनीय प्रथाएँ थी जिन मेसे एक थी दास प्रथा। आज आप जानेंगे कि दास प्रथा क्या है?
दास प्रथा क्या है?
दास प्रथा में गरीबो को शक्तिशाली लोगो द्वारा जबरन मजदूर बना दिया जाता था उन पर कई अत्याचार किये जाते थे। यह प्रथा काफी पुरानी है जो 18वीं-12वीं शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती है, मनुस्मृति में भी आपको इस प्रथा के बारें में पढ़ने को मिल जाएगा। मुगलो के समय यह प्रथा चरम पर थी पर माना जाता है कि अकबर ने इस प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और अंग्रेजो के काल में 1832 में विलियम बैंटिक ने दास प्रथा पर रोक लगा दी थी।
यूनान की दास प्रथा
यूनानी इतिहास में दास प्रथा का उल्लेख मिलता है, दास बनाने के लिए सन्तान की खरीदी, अपहरण, बंधी बनाना शामिल था। जो लोग कर्ज नहीं चुका पाते थे उन्हें बंधी बना लिया जाता था, खास कर खेती और घरेलू कामों के लिए दास बनाए जाते थे और एक सम्पत्ति के समान उनकी खरीदी बिक्री हुआ करती थी। कई बार स्वामि इच्छा के अनुसार दास को मुक्त कर देता था और उसे स्वतंत्रता मिल जाती थी।
रोम में दास प्रथा
एक समय में रोम में दास प्रथा चरम पर पहुच गयी थी, जिस कारण दास प्रथा का विद्रोह शुरू हो गया था यह लगभग ई.पू. 73 का समय था, साम्राज्यप्रसार के खत्म हो जाने के कारण दास प्रथा भी खत्म होती जा रही थी और दासों की स्थिती में सुधर होने लगा था। इस प्रथाओं के कारण ही रोमन विकसित नहीं हो सकें तथा शोषण और उत्पीडन का शिकार रहें।
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