हाथ कंगन को आरसी क्या एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है, हो सकता है आपके कई बार इस लोकोक्ति को सुना होगा पर आपको इसका अर्थ नही पता होगा तो आइये जानते हैं कि हाथ कंगन को आरसी क्या कहावत का अर्थ क्या होता है।
हाथ कंगन को आरसी क्या कहावत का अर्थ
हाथ कंगन को आरसी क्या यह आधी लोकोक्ति है ” हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ” यह पूरी लोकोक्ति हैं।
जिसमे पहला वाक्य हाथ कंगन को आरसी क्या में आरसी का अर्थ है काँच यानिकी हाथ के कंगन देखने के लिए कांच की जरूरत नही पड़ती हैं। इसीलिए कहा जा सकता हैं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। हाथ कंगन को आरसी क्या कहावत का मतलब प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है होता है।
और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या का तात्पर्य है कि पहले के समय में अंग्रेजो ने फारसी भाषा को आवश्यक भाषा बना दिया था जिस कारण हर कोई इस भाषा को सीखता था, जिसके बाद कुछ समय में ऐसा माहोल बन गया हैं कि हर पढ़े लिखे इंसान को फारसी याद होती थी जिससे यह मुहावरा बना और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या, मतलब जो पढ़ा लिखा है उसे तो फारसी याद ही होगी। और इस मुहावरे का अर्थ बनता हैं की वह व्यक्ति जो ज्ञानी है उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता।
मुहावरे का वाक्य मे प्रयोग
- राजू के पापा स्कूल के प्रधानाचार्य थे और राजू कक्षा में प्रथम आता था तो सभी कहते थे कि हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या।
- सुजीत ने उसकी शादी में १ करोड़ रूपये खर्च किये और उसका सोने का व्यापार भी है तो लोग कहने लगे हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या।
- संदीप दो बार चौरी करते हुए पकड़ा जा चुका है, और तीसरी बार जब उसे पुलिस ने शक के आधार पर पकड़ा तो उच्च अधिकारी ने कहा कि हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या।
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