आज आप जानेंगे कि काल सर्प योग क्या है? तथा काल सर्प योग कब तक रहता है?
काल सर्प योग कब तक रहता है
काल शर्प दोष अशुभ दोष माना जाता है, यह राहू तथा केतु के द्वारा निर्मित एक ऐसा दोष है जो व्यक्ति के जीवन को काफी प्रभावित करता है। राहू तथा केतु की स्थिति इस दोष को बड़ा सकती है। अगर किसी की कुंडली में यह योग होता है तो उसके जीवन में कई तरह की परेशानियां आ सकती है और उसे कई वर्षो तक संघर्षों का सामना करना पड़ सकता है। किसी न किसी प्रकार की समस्या उसे घेरे रखती है। यह दोष व्यक्ति को 42 वर्ष तक परेशान करता है पर इसका उपाय सम्भव है, कालसर्प दोष की शांति करवा देते से इसका प्रभाव खत्म हो जाता है।
कैसे बनता है काल शर्प दोष?
ज्योतिष शास्त्र बताया गया है कि कुंडली के सातों ग्रह पाप ग्रह राहु-केतु के मध्य आ जाएं तो कालसर्प दोष होता है। राहू और केतु इस दोष के लिए जिम्मेदार होते हैं, माना जाता है की राहू केतु सर्प के समान होते हैं जिसमे राहु को सर्प का मुख और केतु इसकी पूंछ बताया गया है यह व्यक्ति के भाग्य को प्रभावित करते हैं।
कालसर्प के लक्षण
काल शर्प दोष का होना बहुत ही बुरा माना जाता है, इसके कारण व्यक्ति के जीवन से ख़ुशी का जैसे अंत सा हो जाता है। इसके कई लक्षण होते हैं आइये जानते हैं उनके बारे में।
- तनाव का अत्यधिक रहना।
- नकारात्मक विचार आना।
- आत्महत्या करने की इच्छा।
- पारिवारिक कलह।
- आर्थिक संकट।
- जमा पूंजी का नाश।
- विवाह सम्बन्धित समस्या।
- प्रेम में बाधा।
- रोगों से घिर जाना।
- शत्रुओ का ख़तरा।
कालसर्प योग के प्रकार
- अनन्त कालसर्प योग
- कुलिक कालसर्प योग
- वासुकी कालसर्प योग
- शंखपाल कालसर्प योग
- पद्म कालसर्प योग
- महापद्म कालसर्प योग
- तक्षक कालसर्प योग
- कर्कोटक कालसर्प योग
- शंखचूड़ कालसर्प योग
- घातक कालसर्प योग
- विषधार कालसर्प योग
- शेषनाग कालसर्प योग हैं
कालसर्प दोष उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नागों की पूजा करने से इस दोष से बचा जा सकता है, इस दोष के जातक को हर मास की पंचमी तिथि के दिन 8 प्रमुख नागों की पूजा करनी चाहिए। जैसे अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक की पूजा करना चाहिए। इसके अलावा श्रीमद्भागवत और हरिवंश पुराण का पाठ करना चाहिए, घर में मोर पंख रखना चाहिए।
सर्प दोष से बचने का मंत्र
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलम्।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नवं नामानि नागानां च महात्मनान।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातं काले विशेषत:।।
तस्य विष भयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।
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