यदि आप जानना चाहते हैं कि मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है? तो इस लेख की मदद ले सकते हैं इसमें आपको इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।
मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है?
मुक्ति और मोक्ष वैसे तो समानार्थी ही है लेकिन मुक्ति एक संकुचित शब्द है जबकि मोक्ष का अर्थ व्यापक है। मुक्ति को संकुचित शब्द इसलिए कहा गया है क्योकि मृत्यु के पश्चात मुक्ति के मिलने का अर्थ है कि आप इस जीवन से और शरीर से स्वतंत्रता पा लेते हैं और अपने कर्मो के आधार पर आपको अलग जन्म मिलता है, शरीर से मुक्ति मिलना तो निश्चित है पर मोक्ष की प्राप्ति के लिए कई मार्गो को चुनना पड़ता हैं जिसमे मुख्यत कर्मयोग, सांख्ययोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग शालिम है।
मुक्ति मिलने से तात्पर्य है कि व्यक्ति उसके इस जन्म के शरीर और कर्मो से मुक्ति पा लेता है परन्तु मौक्ष मिलने का अर्थ है कि उसकी आत्मा को अब कभी इस मृत्यु लोक यानिकी पृथ्वी पर जन्म नहीं लेना होता हैं वह अब निरंतर देव लोक में निवास करती है तथा मृत्यु लोक के पापो को भोगने से बच जाती है, देव लोक में प्रभु के चरणों में सुख पाती है। ईश्वर ने मुक्ति तथा मोक्ष की व्यवस्था इसलिए की है ताकि आत्मा को कर्मो के अनुसार कर्म के अनुसार अलग-अलग योनियों में जन्म मिले। मनुष्य योनि में जन्म मिलना बड़े सोभाग्य की बात है यदि आप मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भी ईश्वर की भक्ति नहीं करते हैं और न ही सुकर्म करते हैं तो आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है और आपकी आत्मा इस मृत्यु लोक में ही अलग-अलग योनियों में घुमती रहती है। गीता में जानवरों द्वारा भी भगवान की भक्ति का उल्लेख मिलता है, जिस तरह हाथी को भगवान विष्णु ने मगरमच्छ से बचाया था क्योकि उसने नारायण का नाम जप किया था।
मोक्ष स्वर्ग नर्क से भी परे हैं, मुक्ति के बाद कर्मो के अनुसार स्वर्ग नर्क मिलते हैं पर यदि आप मोक्ष के मार्गो पर चलोगे तो आपको फिर कभी इस मृत्यु लोक में जन्म नहीं लेना होगा, आप परम ईश्वर के समीप पहुच जाएँगे। ईश्वर कण-कण में है और हम उन्ही का अंश है इसके लिए मोक्ष का अर्थ यह भी है कि हम ईश्वर में पुनः समाहित हो जाते हैं तथा सुख दुःख, मोह माया, हमारे लिए कुछ नहीं होती है हम ईश्वर में समाहित हो जाते हैं।
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