सावन में शिव भक्तों के लिए कावड़ यात्रा का बहुत महत्व है, शिव भक्त बड़े उत्साह के साथ कावड़ यात्रा में शामिल होते है और कावड़ यात्रियों का स्वागत करते है। हिन्दू धर्म में शंकर भगवान पर जल चढाने का भी बड़ा महत्व है, शिव जी पर जल चढाने से हमारे कष्ट दूर होते हैं और हमारी मनोकामनाए भी पूरी होती है। आइये जानते है कि 2022 में कावड़ यात्रा कब से शुरू होगी व जल कब चढ़ेगा? और साथ ही हम जानेगे कि शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है?
कावड़ यात्रा कब से शुरू होगी व जल कब चढ़ेगा?
2022 में कावड़ यात्रा की शुरवात 14 जुलाई से होगी और यह 27 जुलाई तक चलेगी एवं 27 जल चढ़ेगा जुलाई जब शिव के भक्त कावड़ लेकर निकलते है एक अलग ही मनोरम द्रश्य होता है और सभी बोल बम का नारा लगते हुए आगे बढ़ते है।
पावन नदियों से जल ले कर शिवजी के किस प्रसिद्ध मंदिर तक कि यात्रा कावड़ यात्रा कहलाती है इसमें जो भाग लेते है वो कावड़िया कहलाते है और वह लकड़ी के दोनों शीरो पर टोकरिया बांध कर रखते है जिसमे जल होता है इसे कावड़ कहते है। कावड़ियो का रस्ते में बहुत सी जगहों पर स्वागत भी होता है जहा पुष्प वर्षा और फरिहाल बाट कर इनका स्वागत किया जाता है।
कावड़ यात्रा क्यों निकली जाती है?
कावड़ यात्रा धार्मिक मान्यताओ से जुड़ी हुई है ऐसा माना जाता है ही कावड़ में जल ले जा कर शिव जी को चढाने से वह प्रसन्न होते है और आपके सरे दुःख हर लेते है ।
इस कावड़ यात्रा की मान्यता के पीछे यह कहानी है कि जब समुद्र मंथन में विष निकला था जिसे शंकर भगवान ने ग्रहण कर अपने कंठ में रोक लिया था और वे नीलकंठ कहलाए थे उस समय उनके विष का प्रकोप कम करने के लिए रावण गंगा नदी से कावड़ में जल भर कर लाया था और शिवलिंग पर जल चढ़ाया था जिससे कि उस विष का प्र्कोप कम हुआ था तभी से भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कावड़ में जल ला कर शंकर भगवान को चढ़ाया जाता है।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
वर्तमान समय में तीन प्रकार की कांवड़ यात्रा होती है।
- खड़ी कांवड़
- डाक कांवड़
- झांकी वाली कांवड़
खड़ी कांवड़
इस प्रकार की कांवड़ यात्रा में कावड़िया अपनी कावड़ को जमीं पर नही रख सकता है पूरी यात्रा में उसे यह कावड़ अपने कंधो पर ही रखनी होती है पर उसके साथ में उसका साथ साथी हो सकता है जो आवश्यक समय में कुछ देर के लिए कावड़ अपने कंधो पर ले सकता है या उस कावड़िया को अगर उस कावड़ को अपने कंधे से कुछ समय के लिए उतरना है तो वह स्टैंड का प्रयोग भी कर सकता है बस उसे इस बात का ध्यान रखना है की कावड़ को जमीन पर नही रखना होता है।
डाक कांवड़
डाक कांवड़ में कावड़िया जल चढाने वाले दिन तक बिना रुके चलता है और अपनी कावड़ यात्रा पूर्ण करता है। फिर वह शिव मंदिर में जा कर जल अभिषेक कर अपनी इच्छाओ की पूर्ति की कामना करता है। शंकर भगवान को मनानें के लिए सावन का माह सबसे श्रेष्ठ होता है।
झांकी वाली कांवड़
इस प्रकार की कावड़ काफी मनोहर होती है इसमें भगवान शिव की झांकी के साथ साउंड के साथ गाने बाजे का आनन्द लेते हुए कावड़िया अपनी यात्रा करते है। शिव भक्त इस प्रकार की कावड़ यात्रा में अधिक संख्या में हो सकते है और इनके द्वारा शंकर भगवान की झाकी में शंकर जी की मूर्ति के अलाव बहुत सी आकर्षक और धार्मिक चीज़े हो सकती है जिससे की इन्हें देखने और स्वागत करने वाले भी अत्यधिक होते है।
कुछ और महत्वपूर्ण लेख –
- भगवान शिव को क्यों नही चढ़ता केतकी का फूल
- सम्पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र लिखा हुआ एवं उसका हिंदी में अर्थ
- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?