हिन्दू धर्म इस संसार का सबसे प्राचीन धर्म है जिसमे अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है, और इस धर्म में कई संस्कृत भाषा में मौजूद मंत्र भी है जिनका उपयोग पूजा पाठ में किया जाता है। हर देवता के लिए अलग अलग मंत्र है पर हर पूजा के बाद कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र का जाप किया जाता है। तो आइये जानते हैं कि कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र का अर्थ क्या है तथा क्या है इसका महत्व?
कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र का अर्थ
इस मंत्र में भगवान भोलेनाथ की स्तुति की गयी है। इस मंत्र का अर्थ है –
ज्ञानग्रंथ का WhatsApp Channel ज्वाइन करिये!कर्पूरगौरं – कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं – करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं – समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम् – जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि – भगवान शिव माता पार्वती सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र का महत्व
हर आरती या पूजा के बाद इस मंत्र का जाप किया जाता है। क्योंकि इस मंत्र को सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने भगवान शंकर तथा पार्वती के विवाह में उपयोग किया था। इस मंत्र स्तुति बताती है कि भगवान शंकर इस संसार के अधिपति हैं, वही मृत्यु लोक के देवता हैं, यही संसार में मौजूद हर पशु आदि के देवता हैं, वह श्मशान के वासी हैं तथा मृत्यु के डर को दूर करते हैं। वह केवल बहुत भयंकर और अघोरी वाला स्वरूप नही रखते हैं उनका स्वरुप बहुत दिव्य माना गया है।
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