इस लेख में आप जानेंगे कि महावीर स्वामी के त्रिरत्न क्या थे? और साथ ही महावीर स्वामी से जुड़ी जानकारियाँ भी आपको पढ़ने को मिल जाएगी।
महावीर स्वामी
यह जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थें। जैन धर्म में तीर्थंकर उन्हें कहते हैं जो तप के द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं और संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते हैं। महावीर जी का जन्म वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या में लगभग ढाई हजार वर्ष पहले हुआ था। यह क्षत्रिय परिवार से सम्बन्ध रखते हैं । इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला था। महावीर स्वामी को 72 साल की उम्र में मोक्ष प्राप्त हुआ था। महावीर स्वामी के अन्य नाम भी है जैसे वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति।
महावीर स्वामी के त्रिरत्न क्या थे?
महावीर स्वामी के त्रिरत्न निम्नानुसार है –
सम्यक् ज्ञान
सम्यक् ज्ञान से अर्थ है कि, वह सच्चा तथा सम्पूर्ण ज्ञान जो तीर्थंकरों के उपदेशों से प्राप्त होता है।
सम्यक् दर्शन
सम्यक् दर्शनसे तात्पर्य है कि, तीर्थंकरों में पूरी श्रद्धा, अखण्ड विश्वास व सत्य के प्रति श्रद्धा रखना चाहिए।
सम्यक् चरित्र
इसका मतलब है कि सदाचार पूर्ण जीवन बिताना चाहिए। जब इंसान अपनी इन्द्रियों और अपने कर्मों पर नियंत्रण कर लेता है तब वह इन्द्रियों की वासना में नहीं फँसता है जिससे उसका आचरण शुद्ध हो जाता है।
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